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यह अहसास नाजुक-सा

डॉ. स्वयंभू शलभ
रक्सौल (बिहार)

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जिंदगी में क्या खोया,क्या पाया,इसका हिसाब-किताब करने बैठो तो सचमुच एक कहानी बन जाती हैl
यह जिंदगी तो न जाने कितने रंग दिखाती है…कितने ही सांचे में ढलकर सामने आती है। बीते हुए कल की कुछ आधी-अधूरी यादें,कुछ कही-अनकही कहानियाँ,यही तो जिंदगी भर की कमाई होती है।
कैसे-कैसे अहसास देती है यह जिंदगी,इस राह में कई जाने-अनजाने लोग मिलते हैंl कई लोग हमसफर बनकर साथ भी चलते हैं,लेकिन सिर्फ साथ चलने भर से कोई दिल के करीब नहीं हो जाताl एक खामोशी भी साथ-साथ चलती रहती है…एक फासला-सा कायम रहता हैl कितनी भी दूर साथ चलो, यह दूरी मिटती नहीं है,लेकिन इसी भीड़ में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं,जो सफर में साथ नहीं होते,लेकिन दूर रहकर भी दिल के करीब रहते हैं। यहां फासला दूरियों के हिसाब से तो नजर आता है,लेकिन इस फासले में कमाल की नजदीकियां होती हैंl
दिलचस्प बात तो यह होती है कि,जिनसे हमेशा मुलाकात नहीं हो पाती,बरसों दूर रहते हैं,उनके साथ मन का तार जुड़ा हुआ-सा लगता है। यह दिल की दुनिया भी एक अलग ही दुनिया है।

इंसान की जिंदगी में कितने ही रिश्ते बनते-बिगड़ते रहते हैं। उनमें कुछ तो समय के साथ खोखले साबित हो जाते हैं,तो कुछ निहित स्वार्थ की भेंट चढ़ जाते हैं,पर इन दुनियावी रिश्तों से अलग इन अनाम रिश्तों की खुशबू से पूरी जिंदगी महकती रहती हैl इन रिश्तों का मुलायम-सा अहसास जिंदगी के माथे पर कुमकुम का टीका-सा लगा देता है और एक बारीक-सी मुस्कान ता-उम्र होंठों पर धरी रहती हैl यह अहसास नाजुक-सा है,यह बात फूलों सी है…l

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