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ये भारत प्राण हमारा है

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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रचना शिल्प:मात्रा १६+१४=३०


जन्म भूमि ये कर्मभूमि ये भारत प्राण हमारा है,
जिस मिट्टी में बचपन खेला उस पर तन-मन वारा है।
जिस आँचल की छाँव के तले हमने है जीना सीखा,
हम भारत के वासी,हमको कण-कण इसका प्यारा है॥

इस माटी की सोंधी सुगंध,रची हुई है इस तन में,
इसकी खातिर जाँ दे सकते श्रद्धा भरी हुई मन में।
भारत माता ने हाथों से हमको बहुत दुलारा है,
हम भारत के वासी,हमको कण-कण इसका प्यारा है…॥

ये वीर बाँकुरों की धरती,है वीरों की खान यही,
सर कट जाते धड़ लड़ते थे,कहते बड़के सदा सही।
ये रामकृष्ण की धरती है,ये सौभाग्य हमारा है,
हम भारत के वासी,हमको कण-कण इसका प्यारा है…॥

भक्ति भाव मीराबाई का जाने है दुनिया सारी,
राजपाट को छोड़ बावरी हुई श्याम की मतवारी।
भक्ति-शक्ति से विष प्याले को भी अमृत कर डारा है,
हम भारत के वासी,हमको कण-कण इसका प्यारा है॥

आया है गणतंत्र दिवस ये,वर्ष इकत्तर बीते हैं,
इसे मनाएं यह खुशियों से,भरे हुए या रीते हैं।
‘जियो और जीने दो’ सबको,मूल मंत्र हमारा है,
हम भारत के वासी,हमको कण-कण इसका प्यारा है।

वीरों ने कुर्बानी दे कर,ही आजाद कराया है,
आसमान से ऊंचा हमने,ये परचम लहराया है।
संविधान अपना ही माने,ये अधिकार हमारा है,
हम भारत के वासी,हमको कण-कण इसका प्यारा है…॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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