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प्रतीक्षा

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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करते-करते इंतजार अब सूख चुका आँखों का पानी,
इस बहार के मौसम में भी मुझको लगती है वीरानी।
दीवाना दिल बात न माने हरदम तेरा नाम पुकारे,
राह निहारूँ तेरी साजन इंतजार में बाँह पसारे॥

युग बीते परदेस गये तुम भूल गये हो मुझको साजन,
करूँ प्रतीक्षा कबसे बैठी बीत गये हैं कितने सावन।
इक पल चैन न आवै मुझको नैना झरते सांझ सकारे,
राह निहारूँ तेरी साजन इंतजार में बाँह पसारे…॥

नित्य तुम्हारी डगर बुहारूँ अपनी पलक बिछाती हूँ मैं,
छत पर बैठे कागा के संग सँदेसा भिजवाती हूँ मैं।
सबसे मन्नत रही मांगती टूटे जब भी कई सितारे,
राह निहारूँ तेरी साजन इंतजार में बाँह पसारे…॥

याद आये सावन के झूले वो सजना श्रृँगार हमारा,
पागल मुझे बना देता था फागुन में वो नाच तुम्हारा।
दिन कटता ना रातें कटती है साजन अब बिना तुम्हारे,
राह निहारूँ तेरी साजन इंतजार में बाँह पसारे…॥

आँख खुलें, हों दरश तुम्हारे काश कोई ऐसा दिन आये,
ऐसा न हो इंतजार में ये तन ख़ाक मेरा हो जाये।
अब ना देर करो आने में अटके हैं ये प्राण हमारे,
राह निहारूँ तेरी साजन इंतजार में बाँह पसारे…॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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