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रूप जगत का न्यारा होता

जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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चाहे मानो या मत मानो,पर मेरा विश्वास अटल है,
मज़हब अगर नहीं होते तो,रूप जगत का न्यारा होता।

जाति-पाति के बंध न होते,आपस में संबंधी होते,
बंधन संसाधन बन जाते,विपदा में अनुबंधी होते।
धरती माँ का पूजन होता,प्रकृति का योजन होता,
यक्ष प्रश्न यदि ऋषि मुनियों ने,संयम पूर्ण विचारा होता।
मज़हब अगर नहीं होते तो,रूप जगत का न्यारा होता…॥

सरहद मुक्त विश्व होता तब,भौगोलिक सीमांकन होता,
जलवायु परिवर्तन खातिर,सकल विश्व में मंथन होता।
भांति परिंदों के मानव भी,दुनियाभर में विचरण करता,
द्वेष क्लेश सभी मिट जाते,मानव धर्म हमारा होता।
मज़हब अगर नहीं होते तो,रूप जगत का न्यारा होता…॥

प्राकृतिक विपदा की खातिर,सेना काम काज सब करती,
परमाणु से बिजली बनती,उजियारी हो जाती धरती।
अस्त्र-शस्त्र की होड़ न होती,कितने धन साधन बच जाते।
भूख गरीबी से लड़ने में,यह धन एक सहारा होता,
मज़हब अगर नहीं होते तो,रूप जगत का न्यारा होता…॥

सागर में भी कोलाहल है,रोज मिसाइल बम चलने से,
अब भी समय सँभल जा ‘हलधर’,दुनिया बच जाये जलने से।
रंग भेद विस्तारवाद का,नाग समय पर कुचला होता,
स्वर्ग सरीखी धरती होती,रंग निराला प्यारा होता।
मज़हब अगर नहीं होते तो,रूप जगत का न्यारा होता…॥

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