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शर्मिन्दा हैं हम…

सुरेश चन्द्र ‘सर्वहारा’
कोटा(राजस्थान)
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शर्मिन्दा हैं हम…
जार्ज फ्लाॅयड
तुम्हारी
असामयिक मौत पर,
कम है
अगर रोएँ भी
तुम्हारी याद में
बैठकर हम रातभर।
जो प्रजातांत्रिक
सभ्य समाज के लोग,
सहिष्णु होने का
दम भरते हैं,
वे ही
नस्लवादी-रंगभेदी,
घिनौने कामों से
कब डरते हैं।
बर्बर पुलिस ने,
गर्दन तुम्हारी नहीं
मानवता की है दबाई,
साँस लेने में
तुम्हें ही नहीं,
हमें भी तो
हो रही थी कठिनाई।
अकेले तुम नहीं,
सदियों से
असंख्य काले लोग,
मौत के घाट
जाते रहे हैं उतारे,
ताकि फल-फूल सके
गौरों की शहरी सभ्यता,
तुम्हारे
खून-पसीने के सहारे।
करते रहे
समाज के ठेकेदार,
तुम्हारे साथ
पशुवत् व्यवहार,
मरते रहे तुम
कीड़े-मकौड़ों-से,
खा-खाकर
कोड़ों की मार।
आहत है आज,
मार्टिन लूथर
क्षुब्ध है लिंकन,
अश्वेतों के
अधिकारों का,
देखकर
सरेआम हनन।
आक्रोशित जन,
चढ़ा रहे हैं
तुम्हारी तस्वीर पर,
जगह-जगह
आँसू के हार,
किन्तु
निर्लिप्त है,
इन सबसे
बहुमत से चुनी
लोकप्रिय सरकारll

परिचय-सुरेश चन्द्र का लेखन में नाम `सर्वहारा` हैl जन्म २२ फरवरी १९६१ में उदयपुर(राजस्थान)में हुआ हैl आपकी शिक्षा-एम.ए.(संस्कृत एवं हिन्दी)हैl प्रकाशित कृतियों में-नागफनी,मन फिर हुआ उदास,मिट्टी से कटे लोग सहित पत्ता भर छाँव और पतझर के प्रतिबिम्ब(सभी काव्य संकलन)आदि ११ हैं। ऐसे ही-बाल गीत सुधा,बाल गीत पीयूष तथा बाल गीत सुमन आदि ७ बाल कविता संग्रह भी हैंl आप रेलवे से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त अनुभाग अधिकारी होकर स्वतंत्र लेखन में हैं। आपका बसेरा कोटा(राजस्थान)में हैl

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