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स्त्री का अस्तित्व

अंतुलता वर्मा ‘अन्नू’ 
भोपाल (मध्यप्रदेश)
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हर बार तुम मुझे,
वस्तु की तरह समझते रहे
क्या तुम नहीं जानते थे,
कि मैं एक जीवात्मा हूँ।
मेरे सीने में भी दिल है,
फिर भी तुम मुझे
वस्तु की तरह समझते रहे,
मेरे मन को छन्नी करते रहे।
मेरी भावनाओं को,
मेरे अरमानों को रौंदते रहे
मेरे अस्तित्व को,
चोट पहुँचाते रहे।
मेरी अंतरात्मा आघात होती रही,
फिर भी मैं चुप रही
ये अपमान सहती रही,
इस आस में कि,
कभी तो तुम
मेरी पीड़ा को समझोगे।
मुझे मान दोगे,
ये आस दिल ही दिल में
दबी रह गई,
तुम कभी मेरी भावनाओं को
समझे ही नहीं।
आखिर मैं भी कब तक,
अपमानित होती रहूं
ऐसे ही घुट-घुट कर जीती रहूं,
अपने आत्मबल को दबाती रही
पर अब बहुत हुआ।
उन खोखले बंधनों में बंध कर,
आत्मसम्मान को खोना
मैं अब अंतर्मन से,
इन सबसे
कहीं दूर निकल गई हूँ
उन्मुक्त पंछी-सी,
जहां शांति महसूस हो रही है।
मन में आत्मविश्वास भरा है,
पूर्णता का एहसास हो रहा है
यह मेरी स्त्रीत्वता थी,
जो खुद को अब तक समेटा
और स्वयं को व्याप्त,
और विस्तृत करती चली गई।
अब मुझे एक आनन्द की,

अनुभूति प्रतीत हो रही है…॥

परिचय-श्रीमती अंतुलता वर्मा का साहित्यिक उपनाम ‘अन्नू’ है। १५ नवम्बर १९८३ को विदिशा में जन्मीं अन्नू वर्तमान में करोंद (भोपाल)में स्थाई रुप से बसी हुई हैं। हिंदी,अंग्रेजी और गुजराती भाषा का ज्ञान रखने वाली मध्यप्रदेश वासी श्रीमती वर्मा ने एम.ए.(हिंदी साहित्य),डी.एड. एवं बी.एड. की शिक्षा प्राप्त की है। आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी (शास. सहायक शिक्षक)है। सामाजिक गतिविधि में आप सक्रिय एवं समाजसेवी संस्थानों में सहभागिता रखती हैं। लेखन विधा-काव्य,लघुकथा एवं लेख है। अध्ययनरत समय में कविता लेखन में कई बार प्रथम स्थान प्राप्त कर चुकी अन्नू सोशल मीडिया पर भी लेखन करती हैं। इनकी विशेष उपलब्धि-चित्रकला एवं हस्तशिल्प क्षेत्र में कई बार पुरस्कृत होना है। अन्नू की लेखनी का उद्देश्य-मन की संतुष्टि,सामाजिक जागरूकता व चेतना का विकास करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महादेवी वर्मा,मैथिलीशरण गुप्त,सुमित्रा नन्दन पंत,सुभद्रा कुमारी चौहान एवं मुंशी प्रेमचंद हैं। प्रेरणापुंज -महिला विकास एवं महिला सशक्तिकरण है। विशेषज्ञता-चित्रकला एवं हस्तशिल्प में बहुत रुचि है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हमारे देश में अलग-अलग भाषाएं बोली जाती है,परंतु हिंदी एकमात्र ऐसी भाषा है जो देश के अधिकांश हिस्सों में बोली जाती है,इसलिए इसे राष्ट्रभाषा माना जाता है,पर अधिकृत दर्जा नहीं दिया गया है। अच्छे साहित्य की रचना राष्ट्रभाषा से ही होती है। हमें अपने राष्ट्र एवं राष्ट्रीय भाषा पर गर्व है।”

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