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क्या कमाया…?

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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संसार-सागर
सिर्फ समय-सराय,
परमात्मा से बिछड़-
आत्मा यहां आय।

पार्थिव तत्वों को
उसने ही गूँथ कर,
घररूपी नश्वर
शरीर बनाया।
हाथ खुले
रखकर है जाना,
फिर क्यों सोचे..?
कि क्या
तूने कमाया…?

पाने से ज्यादा तू
खोकर है जाता,
मोह-माया के जाल में-
उलझ-उलझ रह जाता।

यहीं पे पाता
यहीं पे खोता,
बस मूर्ख बन-
जाने क्यों रोता।

आमदनी तेरी बस
‘समय फेर का’,
और कमाई-
‘हृदय भरा प्रेम का।’

जितना समय-चक्र
तेरा धरती पर,
केवल यहाँ बस-
‘प्रेम-कमाई’ तू कर।

यही प्रेम
तेरे साथ है जाना,
नहीं तो दुनिया-
जाने भुलाना।

बंद मुठ्ठी तू
लेकर है आया,
मुठ्ठी बन्द-
न जा पाएगा।

मोह के फेर में
पड़कर तू बस,
अंत समय
पछताएगा।

‘प्रेम कमाई’ से
गठरी खाली गर,
मुँह क्या तू-
उसको दिखाएगा।

समय फेर के
चक्कर में बस,
खाली हाथ आया-
खाली ही जाएगा॥

परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-२०१७ सहित अन्य से सम्मानित किया गया है|

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