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क्या गुरू…! फिर तालाबन्दी…

तारकेश कुमार ओझा
खड़गपुर(प. बंगाल )

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जो बीत गई उसकी क्या बात करें,लेकिन जो बीत रही है उसे अनदेखा भी कैसे और कब तक करेंl ऐसा डरा-सहमा सावन जीवन में पहली बार देखा,लोग पूछते हैं…क्या कोरोना काल में इस बार रक्षाबंधन और गणेशोत्सव भी फीके ही रह जाएंगेl यहां तक कि,खतरनाक विषाणु की अपशकुनी काली छाया महापर्व दशहरा और दीपोत्सव पर भी मंडराती रहेगीl
खैर भूत-भविष्य को छोड़ वर्तमान में लौटें,तो अ-तालाबन्दी के दौर में तालाबन्दी से जुड़ा सवाल सबसे महत्वपूर्ण हो गया हैl इन दिनों चाहे जिस तरफ निकल जाइए…एक ही सवाल सुनने को मिलता है…क्या गुरू,फिर तालाबन्दी ? यह सवाल खरीददार,मजदूर, मरीज,कामगार और छात्रों को जितना परेशान कर रहा है,उतना ही दुकानदार, व्यवसायी,शिक्षक और रोज कमा कर खाने वालों को भीl तालाबन्दी का सवाल लाख टके का हो चुका हैl हर कोई इसका जवाब फौरन चाहता है,लेकिन जटिल और पेचीदगियां किसी को आश्वस्त नहीं होने दे रहीl तालाबन्दी पर समाज की अलग-अलग राय हैl एक वर्ग विषाणु संक्रमण रोकने के लिए तालाबन्दी को ही एकमात्र कारगर उपाय मानता है,तो दूसरे वर्ग की दलील है कि दोबारा तालाबन्दी रोज कमा कर खाने वालों को भुखमरी की ओर धकेल देगीl इसमें दिलचस्पी इसके समर्थक और विरोधी दोनों की हैl हर चौराहा पर गर्म चाय की घूँट गले में उतार रहे कुछ लोग आपसी बातचीत में व्यस्त हैंl चाय सुड़कते हुए एक बोला…-“का हो…फिर झांप गिरेगा का ?”
दूसरे का उसी अंदाज में जवाब था…-“इसके सिवा और उपाय भी क्या है ?? देख नहीं रहा मामले कैसे उछल-उछल कर बढ़ रहा है!!” खैनी में चूना मसलते हुए एक अन्य ने कहा….-“देखो शायद जल्दी ही कुछ घोषणा होगी….! लेकिन इससे मर्ज नियंत्रित हो जाएगा,इसकी कोई गारंटी है ?? कई जगह खत्म होकर ये फिर लौटा है…”

चाय का अंतिम घूँट गले में उतारने के बाद कप डस्टबिन में फेंकते हुए एक ने दलील दी-“भीड़ भरे बाजार में फुटपाथ पर दुकान करने वालों का तो मानो यक्ष प्रश्न ही था…क्या भइया,फिर तालाबन्दी होगी क्या,सवाल पूछने वालों का बिन मांगा जवाब भी मौजूद था…क्या मरण है बोलिए तो,ए साल धंधा-पानी सब चौपट,क्या होगा भगवान जाने…!!” महामारी के इस दौर में बुजुर्गों का अपना ही दर्द महसूस हुआ,जिसकी ओर हमारा ध्यान कम ही जाता हैl थाने के नजदीक व्यस्ततम चौराहे के पास दो बुजुर्ग आहिस्ता-आहिस्ता बातचीत कर रहे हैं…”क्यों इस खतरनाक रोग की कोई वैक्सीन ईजाद हुई…” दूसरे ने निराश स्वर में जवाब दिया…-“अभी तक तो नहीं…. !!”

परिचय-तारकेश कुमार ओझा का नाम खड़गपुर में वरिष्ठ पत्रकार के रुप में जाना जाता है। आपका निवास पश्चिम बंगाल के खड़गपुर स्थित भगवानपुर (जिला पश्चिम मेदिनीपुर) में है। आपकी लेखन विधा अनुभव आधारित लेख,संस्मरण और सामान्य आलेख है।श्री ओझा का जन्म स्थान प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश) हैl पश्चिम बंगाल निवासी श्री ओझा की शिक्षा बी.कॉम. हैl कार्यक्षेत्र में आप पत्रकारिता में होकर उप सम्पादक हैंl आपको मटुकधारी सिंह हिंदी पत्रकारिता पुरस्कार तथा श्रीमती लीलादेवी पुरस्कार के साथ ही बेस्ट ब्लॉगर के भी कई सम्मान मिल चुके हैंl आप ब्लॉग पर भी लिखते हैंl  

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