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यदि ‘लव’ है तो ‘जिहाद’ कैसा ?

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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‘लव जिहाद’ के खिलाफ उप्र और हरियाणा सरकार कानून बनाने की घोषणा कर रही है और ‘लव जिहाद’ के नए-नए मामले सामने आते जा रहे हैं। फरीदाबाद में निकिता तोमर की हत्या इसीलिए की गई बताई जाती है कि उसने हिंदू से मुसलमान बनने से मना कर दिया था। उसका मुसलमान प्रेमी उसे शादी के पहले मुसलमान बनने का आग्रह कर रहा था। यह शब्द लव-जिहाद २००९ में सामने आया,जब केरल और कर्नाटक के कैथोलिक ईसाइयों ने शोर मचाया कि उनकी लगभग ४००० बेटियों को प्रलोभन देकर या डराकर मुसलमान बना लिया गया है। एक-दो मामले उच्च और सर्वोच्च न्यायालय में भी चले गए। सरकारी जांच एजेंसियों ने भी तगड़ी छान-बीन की,लेकिन हर मामले में लालच या डर या इस्लामिक षड़यंत्र नहीं पाया गया,किंतु एजेन्सियों को ऐसे ठोस प्रमाण जरुर मिले कि कुछ इस्लामी संगठन बाकायदा धर्म-परिवर्तन (तगय्युर) की मुहिम चलाए हुए हैं और उनकी कोशिश होती है कि वे हिंदू,ईसाई,सिख आदि को इस्लामी जमात में शामिल कर लें। इस तरह की कोशिशें सिर्फ यहूदियों और पारसियों में ही कम से कम देखने में आती हैं,वरना कौन-सा मजहब है,जो अपना संख्या-बल बढ़ाने की कोशिश नहीं करता ? वे ऐसा इसीलिए करते हैं,क्योंकि वे समझते है कि ईश्वर,अल्लाह या यहोवा को प्राप्त करने का उनका मार्ग ही एकमात्र मार्ग है और वही सर्वश्रेष्ठ है। सिर्फ हिंदू धर्म के अनुयायी ही सारी दुनिया में एक मात्र ऐसे हैं,जो यह मानते हैं कि ‘एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति।’ याने सत्य एक ही है लेकिन विद्वान उसे कई रुप में जानते हैं। इसीलिए भारत के हिंदू या बौद्ध या जैन या सिख लोगों ने धर्म-परिवर्तन के लिए कभी तन,तलवार या तिजोरी का सहारा नहीं लिया।
ईसा मसीह और पैगंबर मोहम्मद के जमाने की बात अदभुत है लेकिन उसके बाद इस्लाम और उससे पहले ईसाई मत का धर्मान्तरण का इतिहास इससे एकदम उल्टा है। यूरोप में लगभग १ हजार साल के इतिहास को अंधकार-युग के नाम से जाना जाता है और यदि आप ईरान,अफगानिस्तान और भारत के मध्ययुगीन इतिहास को ध्यान से पढ़ें तो पता चलेगा कि सूफियों को छोड़ दें तो इस्लाम जिन कारणों से भारत में फैला है,वे उसके श्रेष्ठ सिद्धांतों के कारण नहीं,बल्कि ऐसे कारणों से फैला है,जिन्हें इस्लामी कहना बहुत ही मुश्किल है। भारत में ईसाइयत और अंग्रेजों की गुलामी एक ही सिक्के के दो पहलू रहे हैं। इसका तोड़ आर्य समाज ने निकाला था-शुद्धि आंदोलन लेकिन वह भी अधर में ही लटक गया, क्योंकि मजहब पर जात हावी हो गई। ‘घर वापसी’ का भी हाल वही हो रहा है। यदि युवक और युवती में सच्चा प्रेम है तो मजहब या पैसा या जात या वंश-कुछ भी आड़े नहीं आ सकता। जहां ‘लव’ है, वहां ‘जिहाद’ का ख्याल ही नहीं उठता। जहां ‘लव’ (प्रेम) की जगह लाभ-हानि का गणित होता है,वहीं धर्म-परिवर्तन जरुरी हो जाता है। ईरान,तुर्की,यूरोप और अमेरिका में ऐसे कई द्विधर्मी जोड़े देखे,जो स्वधर्म में स्थित रहते हुए या उन्हें हाशिए में रखते हुए मजे से गृहस्थ-धर्म निभाते थे।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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