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यह क्या हो गया है ?

योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र)
पटना (बिहार)
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जीना आज इस जहाँ में-
दूभर कितना हो गया है ?
निज हित जहाँ टकराता है-
वही निशाना हो गया है।

पूछो क्या नीति-अनीति की-
नीति बस पाना हो गया है;
जैसा कदम मिलाना हो-
वैसा पैमाना हो गया है।

झंडा लिए जो गर्व से चले थे-
झंडा वह पुराना हो गया है;
नये झंडे के साथ में देखो-
नवरंग जमाना हो गया है।

दिन को दिन कहना अब तो-
चलन पुराना हो गया है;
नये चलन में तो रात को भी-
दिन कहलाना हो गया है।

काम का गुण अब कहाँ रहा-
गुण अब अपना होना हो गया है;
अपना अगर हो न सके तो-
नज़र बेगाना हो गया है।

भाईचारा जहाँ धर्म था-
भाई होना धर्म हो गया है;
जाति-पाँति के मर्म पर चलना-
सबसे बड़ा कर्म हो गया है।

अच्छे को अच्छा कहने का-
राग पुराना अब हो गया है;
नये राग में तो बुरे का भी-
अच्छा कहाना हो गया है।

अब तो बाहुबली कहलाना-
मान ही बढ़ाना हो गया है;
बाहुबली-प्रतिनिधि बनना-
आसान कितना हो गया है।

प्रजातंत्र का काम क्या पूछो-
प्रजा-तरसाना हो गया है;
कागज के पन्नों पर मदद खा-
भूखे रह जाना हो गया है।

जन-प्रतिनिधि बनकर भी तो-
जन को भुलाना हो गया है;
पर चुनाव आने पर जन को-
मालिक बनाना हो गया है।

कितनी कहूँ कथा इन सबकी-
कमाल हर फसाना हो गया है।
मैं तुमसे पूछूँ ऐ जमाना-
बताओ यह क्या हो गया है…?

परिचय-योगेन्द्र प्रसाद मिश्र (जे.पी. मिश्र) का जन्म २२ जून १९३७ को ग्राम सनौर(जिला-गोड्डा,झारखण्ड) में हुआ। आपका वर्तमान में स्थाई पता बिहार राज्य के पटना जिले स्थित केसरीनगर है। कृषि से स्नातकोत्तर उत्तीर्ण श्री मिश्र को हिन्दी,संस्कृत व अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-बैंक(मुख्य प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त) रहा है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन सहित स्थानीय स्तर पर दशेक साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े हुए होकर आप सामाजिक गतिविधि में सतत सक्रिय हैं। लेखन विधा-कविता,आलेख, अनुवाद(वेद के कतिपय मंत्रों का सरल हिन्दी पद्यानुवाद)है। अभी तक-सृजन की ओर (काव्य-संग्रह),कहानी विदेह जनपद की (अनुसर्जन),शब्द,संस्कृति और सृजन (आलेख-संकलन),वेदांश हिन्दी पद्यागम (पद्यानुवाद)एवं समर्पित-ग्रंथ सृजन पथिक (अमृतोत्सव पर) पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। सम्पादित में अभिनव हिन्दी गीता (कनाडावासी स्व. वेदानन्द ठाकुर अनूदित श्रीमद्भगवद्गीता के समश्लोकी हिन्दी पद्यानुवाद का उनकी मृत्यु के बाद,२००१), वेद-प्रवाह काव्य-संग्रह का नामकरण-सम्पादन-प्रकाशन (२००१)एवं डॉ. जितेन्द्र सहाय स्मृत्यंजलि आदि ८ पुस्तकों का भी सम्पादन किया है। आपने कई पत्र-पत्रिका का भी सम्पादन किया है। आपको प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो कवि-अभिनन्दन (२००३,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन), समन्वयश्री २००७ (भोपाल)एवं मानांजलि (बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन) प्रमुख हैं। वरिष्ठ सहित्यकार योगेन्द्र प्रसाद मिश्र की विशेष उपलब्धि-सांस्कृतिक अवसरों पर आशुकवि के रूप में काव्य-रचना,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के समारोहों का मंच-संचालन करने सहित देशभर में हिन्दी गोष्ठियों में भाग लेना और दिए विषयों पर पत्र प्रस्तुत करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-कार्य और कारण का अनुसंधान तथा विवेचन है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचन्द,जयशंकर प्रसाद,रामधारी सिंह ‘दिनकर’ और मैथिलीशरण गुप्त है। आपके लिए प्रेरणापुंज-पं. जनार्दन मिश्र ‘परमेश’ तथा पं. बुद्धिनाथ झा ‘कैरव’ हैं। श्री मिश्र की विशेषज्ञता-सांस्कृतिक-काव्यों की समयानुसार रचना करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत जो विश्वगुरु रहा है,उसकी आज भी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। हिन्दी को राजभाषा की मान्यता तो मिली,पर वह शर्तों से बंधी है कि, जब तक राज्य का विधान मंडल,विधि द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए उसका इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था।”

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