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निष्ठुर सरकार,कैसा सामाजिक सरोकार

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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प्रवासी मजदूरों से रेल किराया वसूलना………….
जिस प्रकार प्रकृति का एक नियम होता है जब बहुत तेज़ गर्मी पड़ती है तब सूर्य अपनी ऊष्मा से जलीय अंश का शोषण करता है चाहे वह नदी,तालाब या समुद्र कहीं का भी होl नदी,तालाब,झील के पानी से उनमें कमी आकर सूखने लगती है,पर समुद्र के स्तर पर कोई विशेष अंतर दिखाई या समझ में नहीं आताl फिर वह बादल बन कर पुनः वर्षा के रूप में हमें मिलता है और हमें सुखद अनुभूति होती है,और होना भी चाहिएl
हमारा देश लोक कल्याणकारी राष्ट्र हैl वह जनता के लिए बना है और जनता ही चुनती है और जनता ही नायक या खलनायक बना देती हैl वैसे कोई भी व्यक्ति बड़ा-छोटा नहीं होता, वह बड़ा या छोटा धन के कारण माना जाता हैl
`को नाम धनहीनो न भवति लघुःl`
लोक में कौन-सा दरिद्र व्यक्ति छोटा नहीं होता ?महाकवि कालिदास ने भी कहा है कि,`लोक में सभी मनुष्य निर्धनता से छोटे और धन से बड़े होते हैंl` वादीभसिंहसूरी ने भी दरिद्रता को दुःख की जननी कहा हैl
`पुरुषो हि न पुरुषस्य दासः किन्तु धनस्यl`
निश्चय से लोक में मनुष्य,मनुष्य का दास नहीं होता है,किन्तु धन का दास होता हैl `महाभारत` के भीष्म पर्व में लिखा है कि-महात्मा भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर से कहा था-“कि हे महाराज! मनुष्य मनुष्य धन का दास है,परन्तु धन किसी का दास नहीं, अतः धन के कारण से ही मैं कौरवों के अधीन हुआ हूँl”
एक बात जरूर जानने योग्य है कि,प्रधान सेवक या मंत्रियों को झूठी आशा,दिलासा नहीं देना चाहिए,-
`भृतयमशक्यंप्रयोजनम च जनं नाशया क्लेशयेतl`
असमर्थ व्यक्ति को,सेवक को और निःस्वार्थी व्यक्ति को झूठी आशा देकर पीड़ित नहीं करना चाहिएl स्वामी को प्रयोजन -सिद्धि करने में असमर्थ सेवक के लिए पारितोषिक आदि का प्रलोभन देकर क्लेशित नहीं करना चाहिएl
`अनुपयोगिता महतापि किम जलधिजलेनl`
समुद्र की उस प्रचुर जलराशि से क्या लाभ ? जो खारी होने के कारण उपभोग में नहीं आतीl
`दत्तपरिहारमनुग्रह्यियातl`
राजा ने जिनको पूर्व में कर लेने से मुक्त कर दिया है,उनसे वह फिर से कर न लेकर उनका अनुग्रह करे,क्योंकि इससे उसकी वचन-प्रतिष्ठा और कीर्ति होती हैl
प्रवासी मजदूरों को अपने घरों को जाने की क्यों जरुरत ? कारण जहाँ पर वे हैं,वहां रोजगार नहीं हैl नौकरी से निकाल दिया गया, उसके बाद उनके रहवास से पृथक कर दिया गयाl खाने-पीने-रहने का अभाव होने से उनके पास एक ही विकल्प बचा-वह अपना घर, जन्मभूमिl लगभग ४० दिनों के बाद सरकारों ने इस पर विचार किया और उनको भेजने की व्यवस्था बनाईl इसके पूर्व हजारों मजदूर पैदल,साइकिल और अन्य साधनों से चोरी-छुपे भाग गए थेl
सरकारों ने कई को मदद के नाम पर पैसा दिया,खाने को मदद कीl अब उनको अपने घर जाने के लिए व्यवस्था की तो उसमें सरकार ने रेल किराए में जो धन दिया था,मदद के नाम पर वह टिकिट के नाम पर वसूल लिया,यानी `पुनः मूषको भवःl`
सरकार बहुत मामलों में बहुत ही ईमानदार है,पर जहाँ मदद करनी चाहिए थी, उनसे दुगनी रकम वसूल रहे हैंl यानी गरीबी और ऊपर से गीला आटाl यह कितनी बड़ी दूरदर्शिता कही जाएl मालूम है सरकार पर अतिरिक्त बोझ आएगा,पर क्या सरकार इतना बोझ भी सहन नहीं कर पाएगीl हमारे शासक,मंत्री,सचिव आदि सम्पन्न लोग उनकी तरफ रहकर सोंचें,बेचारों पर कितनी बड़ी विपदा आ पड़ी हैl ईश्वर ऐसा समय किसी को न दे,पर इस समय सरकारों को खुले मन से हृदय की विशालता को बताते हुए उनकी मदद करना चाहिएl
इस किराया वसूली से सरकारों के खजानों में कितनी वृद्धि होगी ?, क्या वर्तमान में इस प्रकार का शोषण करना जरूरी है ? इससे क्या सरकारें लोकप्रिय होंगी ? देश के कर्णधारों समझो कि,सब इसी धरा पर,धरा रह जाएगाl परोपकार की भावना रखो,गरीब जब जागेगा,तब कौन बचाएगा ?

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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