कुल पृष्ठ दर्शन : 882

खंडगिरि और उदयगिरि की पहाड़ियाँ

डॉ. स्वयंभू शलभ
रक्सौल (बिहार)

******************************************************

भुवनेश्वर यात्रा…………..
लिंगराज मंदिर,परशुरामेश्वर मंदिर,मुक्तेश्वर मंदिर और सिद्धेश्वर मंदिर के दर्शन के बाद हमारा अगला लक्ष्य उदयगिरी और खंडगिरी की पहाड़ियों को प्रत्यक्ष देखने का था…।
भुवनेश्वर के बाहरी भाग में शहर से करीब ८ किमी दूर स्थित ये पहाड़ियां ओडिसा की सांस्कृतिक धरोहर हैं। इन पहाड़ियों पर प्राचीन बौद्ध धर्म और जैन धर्म से जुड़े कई संदर्भ मिलते हैं। ये पहाड़ियां प्राचीन भारत की स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
खंडगिरि और उदयगिरि की गुफाएं अजंता और एलोरा की तरह एक ही पहाड़ को काट कर बनाई गई हैं। इन दोनों जुड़वां पहाड़ियों को कुमारगिरि और कुमारीगिरि के नाम से भी जाना जाता है। कुमारी पर्वत तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध रहा है। इतिहास बताता है कि, तीर्थंकर भगवान महावीर की धर्मसभा यहां हुई थी जिसे जैन संस्कार में समवसरण कहा जाता है। खंडगिरि पर्वत पर छोटे-बड़े चार मंदिर भी बने हैं। इसकी चोटी पर तीर्थंकर महावीर और पा‌र्श्वनाथ का मंदिर है।
२३ फुट ऊँचे पहाड़ की खुदाई से खंडगिरि का निर्माण हुआ,जबकि उदयगिरि को ११३ फुट ऊंचे पहाड़ को काट कर बनाया गया। खंडगिरी में १५ गुफाएँ हैं,और सामने करीब २०० मीटर की दूरी पर स्थित उदयगिरि में १८ गुफाएँ हैं।
उदयगिरि की गुफाएं पहाड़ के अलग-अलग स्तर पर बनी हैं,और एक-दूसरे के साथ सीढ़ियों से जुड़ी हुई हैं। पहली पहाड़ी के आधार पर रानी की गुफा है। इस गुफा के बाहरी बरामदे की बनावट और यहां स्थित मंदिर की मूर्तिकला विशेष आकर्षित करती है। इसके ऊपर गणेश गुफा है। इसकी दीवारों पर हाथी की मूर्तियां बनी हैं और सीताहरण की कथा उत्कीर्ण है। गुफा के बाहरी हिस्से में नीति कथाएं भी वर्णित हैं। हाथी गुफा की दीवारों पर खुदे हुए पाषाणीय अभिलेख भारत में पाए जाने वाले पाली अभिलेखों का एक बेहतरीन उदाहरण हैं। इन गुफाओं के अलावा उदयगिरि में व्याघ्र गुफा,सर्प गुफा, अनंत गुफा और जैन गुफा भी हैं।
बलुआ पत्थर से निर्मित ये गुफाएं भारत के गौरवशाली अतीत की साक्षी हैं। राजा खारवेल जो कलिंग के सबसे प्रसिद्ध राजाओं में से एक थे। उनके शासनकाल में चट्टानों को काट कर ये गुफाएं बनाई गई थीं। उनके शासनकाल के १३ वर्षों के पाषाणीय अभिलेख भी इनमें मौजूद हैं। पहली शताब्दी ईसा पूर्व से पहले की बनी हुई ये गुफाएं भारत के आश्चर्यों में शुमार होती हैं। इन गुफाओं का निर्माण जैन भिक्षुओं की साधना और निर्वाण यात्रा के लिए किया गया था।
यहाँ के शिलालेख प्रायः ब्राह्मी भाषा में हैं, और कई शब्द कालक्रम में मिट भी गए हैं जिसके कारण इन शिलालेखों को पढ़ना मुश्किल होता है। फिर भी इन शिलालेखों में प्रेम,करुणा और धार्मिक सहिष्णुता का भाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
इन पहाड़ियों पर हर समय बंदरों का जमावड़ा लगा रहता है। वे यहां आने वाले हर किसी की गतिविधि पर नजर भी रखते हैं और उनके साथ अपनी भावनाओं को प्रदर्शित भी करते हैं। यहां आने वाले लोग उनके लिए कुछ न कुछ खाने की सामग्री लेकर आते हैं। ज्यादातर लोग मूंगफली या केले खरीद लेते हैं,जो वहां पहाड़ी के ऊपर भी मिल जाता है।
वानर सेना की उछलकूद और लोगों के साथ उनके मेल-जोल को देखने का हमारा अनुभव भी दिलचस्प था। मूंगफली और केले खा खा कर बोर हो चुकी वानर सेना को जब हमने कुरकुरे का पैकेट थमाया तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। आराम से पैकेट खोलकर उन्होंने जश्न मनाया और जायका बदलने के लिए हमें धन्यवाद दिया।
खंडगिरि और उदयगिरि का भ्रमण ओडिसा के पुरातात्विक,ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व को समझने के साथ-साथ भारत की प्राचीन संस्कृति को जानने का भी एक बेहतरीन अवसर देता है…।
(प्रतीक्षा कीजिए अगले भाग की…)

Leave a Reply