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जुल्म तूने क्या कर दिया

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ 
उदयपुर(राजस्थान)

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जुल्म मुझ पर भी तूने जाने,ये क्या कर दिया
मेरे दिल में ही रहते थे,मुझे ही बेघर कर दिया,
मैं तो बसर कर लूंगा,तन्हा आसमां के नीचे भी-
तूने अपना ठिकाना,दूसरा कयों कर लिया।

संग-ओ-खिश्त का ना था दिल,रहने के लिये
धडकनों की थी हिफाजत,तू बेखौफ़ जीये,
परेशां नहीं हूँ कि चला दिए,तूने इस पे खंजर-
हैरां हूँ,ना आह ना उफ किया,और चल दिए।

दिल में बसाया था,कैद-ए-हयात,नहीं कोई
दिल की चौखट पे बैठा,अपना माथा टेक,
बगावत तो दूर,गिला-शिकवा भी ना था तेरा-
हाथ पकड ना रोकूँगा,नजरें उठा,तू भी देख।

दिल में तुझे,खुद से ज्यादा,तुझे महफ़ूज रखा
रब से भी छुपाना था,इसलिए तुझे छुपाए रखा,
हर मेरी दुआ में आरजू थी तेरी ही सलामती की-
तूने मेरी मौत का,फतवा कहाँ छुपाए रखा।

जुल्मत से खौफ ना हो,खुद को जला रखा था
यूँ रुसवा हो जाओगी,ऐसा कहाँ सोच रखा था,
काश कि मुहब्बत का इम्तहान हो,यूँ चले जाना-
हार के जीयूंगा कैसे,ये भी कहाँ सोच रखा था…॥

(इक दृष्टि यहाँ भी:संग-ओ-खिशत=ईट गारा,जुल्मत=अंधेरा)

परिचय-संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी  विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।

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