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क्या कह दूँ…

सत्येन्द्र प्रसाद साह’सत्येन्द्र बिहारी’
चंदौली(उत्तर प्रदेश)
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तेरे हुस्न की इबादत में
आज क्या कह दूँ,
चौदहवीं के चाँद को भी
तेरा नूर कह दूँ।
लफ़्ज लड़खड़ाते हैं मेरे
तेरे हुस्न की चर्चा में,
तेरी लहराती जुल्फों को,
मैं चनाब कह दूँ॥

तेरे सुर्ख होंठों की पंखुड़ियों
को गुलाब कह दूँ,
तेरे नील-नीले नैनों को
मैं आकाश कह दूँ।
होश गवां बैठे हैं जब से
देखा है तेरे नैनों में,
नशा चढ़ा है तेरा इस कदर
जी चाहता है शराब कह दूँ॥

तेरे गालों के काले तिल को
हुस्न का पहरेदार कह दूँ,
ढला है हुस्न तेरा जिस सांचे से
मैं उसे कमाल कह दूँ।
लुटा दी ज़िन्दगी मैंने
तेरे हुस्न की मधुशाला में,
जी चाहता है तेरे संगमरमरी बदन को
मैं ताज कह दूँ॥

घटाओं को तेरे नैनों का
मैं काजल कह दूँ,
फिजाओं को तेरी जुल्फों का
मैं आँचल कह दूँ।
मेरी साँसें भी महकती है
तेरे बदन की खुशबू से,
बदन की खुशबू को तेरे
फिजा की मैं बहार कह दूँ॥

तेरी बलखाती कमर को
नदियों की धार कह दूँ,
खिले यौवन के दो फूलों को
इत्र का शैलाब कह दूँ,
पीकर तेरे यौवन की मधु को
प्याले में,
साकी हूँ तेरा मधु पीने वाला
क्यूँ ना तुझे पूरी मधुशाला कह दूँ॥

तेरी खनकती हँसी को
सुरों का साज कह दूँ,
तेरे यौवन की महकती
बगिया को कँवल कह दूँ।
चुरा के चैन मेरे दिल का
नहीं मजा है इतराने में,
ओ ‘सत्येन्द्र’ सुंदरी तुझको मैं
अपने ख्वाबों की ग़ज़ल कह दूँ…॥

परिचय-सत्येन्द्र प्रसाद साह का निवास जिला-चंदौली(उत्तर प्रदेश)में हैl इनका साहित्यिक उपनाम-सत्येन्द्र बिहारी हैl जन्म तारीख १७ मार्च १९८५ एवं जन्म स्थान-बिहार राज्य हैl ग्राम सैयदराजा निवासी श्री साह ने स्नातकोत्तर की शिक्षा पाई है और कार्यक्षेत्र-नौकरी हैl आपकी लेखन विधा-कविता हैl हिंदी का भाषा ज्ञान रखने वाले सत्येन्द्र बिहारी की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी को समृद्ध करना हैl

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