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कश्मीर में जवाहिरी का ‘ जिहाद’ यानी पाकिस्तान की और बर्बादी

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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अल-कायदा के मुखिया एयमान जवाहिरी ने अजीब-सा एलान जारी किया है। उसने कश्मीरी नौजवानों से अपील की है कि वे अब बड़े जोर-शोर से आतंकवाद फैलाएं और हिंदुस्तान की नाक में दम कर दें। वे हिंदुस्तान की सरकार और अर्थव्यवस्था को पंगु बना दें। जवाहिरी या उसके मरहूम उस्ताद उसामा बिन लादेन या कोई अन्य इस्लामी अतिवादी इस तरह के बयान जारी करें,उसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है लेकिन इस बार जवाहिरी ने जो कहा है,उससे पाकिस्तान को बहुत एतराज हो सकता है,क्योंकि उसका यह कथन पाकिस्तान को सारी दुनिया में बदनाम भी कर देगा और भारत उस पर जो इल्जाम लगाता है,उसे वह मजबूती भी प्रदान करेगा। जवाहिरी ने कहा है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियां अमेरिका की गुलाम हैं। वे भारत को ब्लैकमेल करने का काम करती हैं। वे कश्मीर की आजादी के लिए नहीं लड़ती,बल्कि अमेरिका के स्वार्थों को सिद्ध करती हैं। आज पाकिस्तानी एजेंसियां कश्मीरी मुजाहिदीन के साथ वैसे ही गद्दारी कर रही हैं,जैसी उन्होंने अफगानिस्तान से रुसी वापसी के बाद अरब मुजाहिदीन के साथ की थी। इसी तर्क के आधार पर जवाहिरी ने कश्मीरी आतंकवादियों से आग्रह किया है कि वे पाकिस्तानी एजेंसियों से अपना संबंध विच्छेद करें। बिल्कुल यही बात चार-पांच दिन पहले ‘अंसार गजबतुल हिंद’ के नए मुखिया हमीद ललहरि ने कही थी। इस संगठन को ज़ाकिर मूसा ने ‘हिजबुल मुजाहिदीन’ को तोड़कर बनाया था। हिज्ब को पाकिस्तानपरस्त संगठन माना जाता है। इधर मूसा भी मारा गया और बालाकोट हमला भी हुआ। सालभर में दर्जनों प्रमुख आतंकवादी भी मारे गए। उनके गिरते हुए मनोबल को उठाने के लिए जवाहिरी ने यह पैंतरा मारा है लेकिन जवाहिरी को यह पता होना चाहिए कि पाकिस्तान की मदद के बिना ‘कश्मीरी जिहाद’ की कमर टूट जाएगी। भूवेष्टित कश्मीर के आतंकवादियों का दम घुट जाएगा। दूसरी बात यह कि,आतंकवाद हजार साल भी चलता रहे तो वह कश्मीर को भारत से अलग नहीं कर पाएगा। हाँ, पाकिस्तान को जरुर बर्बाद कर देगा। फौजी खर्च ने पाकिस्तान को दिवालिया बना दिया है। इमरान खान जैसे स्वाभिमानी पठान को किस-किसके आगे अपना दामन नहीं पसारना पड़ रहा है ? आतंकवाद के चलते जितने लोग भारत में मारे जा रहे हैं,उससे ज्यादा पाकिस्तान और अफगानिस्तान में मारे जा रहे हैं ? ये मरनेवाले कौन हैं ? बेचारे बेकसूर मुसलमान हैं। इन बेकसूर मुसलमानों को मौत के घाट उतारना कौन-सा जिहाद है ? जरा जवाहिरी बताए कि कुरान-शरीफ की कौन-सी आयत में इसे जिहाद कहा गया है ?

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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