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हार सिखाती है,लड़ने का जज्बा बढ़ाती है

राज कुमार चंद्रा ‘राज’
जान्जगीर चाम्पा(छत्तीसगढ़)

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‘हार’ एक ऐसा शब्द,जिसे कोई पसन्द नहीं करता है जिसका सीधा सम्बंध निराशा से है,पर हार का विश्लेषण करें तो पाते हैं कि हार हमारी उन कमियों को उजागर करती है जिससे हम अछूते रहते हैं। हार सही मायने में अनुभव का सागर है,स्वयं के बारे में सोचने और समीक्षा करने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम हार है।
हार संघर्ष से जूझे इंसान को मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूती प्रदान करने में सहायक है। दुनियाभर में ऐसे कई इंसान और शख्सियत हैं,जिन्होंने हार का सामना करके खुद में सुधार किया और फिर बुलन्दी को छुआ है।
हार से उभर कर जो आगे बढ़ता है,वो हार और जीत से ऊपर उठकर स्थाई हो जाता है। कहना अनुचित नहीं होगा कि,हार का सामना कर लिया तो आप बेहतर से बेहतरीन बनने की ओर स्थापित हो सकते हैं,इसलिए किसी भी समय किसी भी क्षेत्र में हार या पराजय मिले तो उससे सीख लेकर फिर सफलता के लिए नई छलांग लगाएँ,तभी आपके गले में विजेता बनने का पुष्पों वाला हार(माला)आएगा।

परिचय-राज कुमार चंद्रा का साहित्यिक नाम ‘राज’ है। १ जुलाई १९८४ को गाँव काशीगढ़( जिला जांजगीर ) में जन्में हैं। आपका स्थाई पता-ग्राम और पोस्ट जैजैपुर,जिला जान्जगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अंग्रेजी और छत्तीसगढ़ी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चंद्रा की शिक्षा-एम.ए.(राजनीति शास्त्र) और डिप्लोमा(इन विद्युत एवं कम्प्यूटर)है। कार्यक्षेत्र- लेखन,व्यवसाय और कृषि है। सामाजिक गतिविधि में सामाजिक कार्य में सक्रिय तथा रक्तदाता संस्था में संरक्षक हैं। राजनीति में रुचि रखने वाले राज कुमार चंद्रा की लेखन विधा-आलेख हैं। कई समाचार पत्रों में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-जनजागरुकता है। आपके पसंदीदा लेखक-मुंशी प्रेमचंद और प्रेरणापुंज-स्वामी विवेकानंद तथा अटल जी हैं। देश और हिन्दी भाषा के प्रति विचार-“भारत महान देश है। यहाँ की संस्कृति और परम्परा महान है,जो लोगों को अपनी ओर खींचती है। हिन्दी भाषा सबसे श्रेष्ठ है,ये जितनी उन्नति करेगी,देश उतना ही उन्नति करेगा।

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