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क्यूँ हार गए तुम!

रूपेश कुमार
सिवान(बिहार) 
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सुशांत सिंह-आत्महत्या

इतनी क्या देर हो गई तुम्हें,
तुम्हें आए कितने दिन हुए
ऐसे कोई थोड़े जाता है भला,
ये जिंदगी कोई खेल थोड़े है।

चौतीस यौवन देख चुके तुम,
क्या इतने ही ज्यादा हो गए
इस छोटी-सी जिंदगी में,
जीवन क्यों मजबूर हुआ!

अभी सारा जीवन बाकी था,
शुरुआत तो अब हुई थी
दूसरे को हौंसला देने वाले,
स्वयं क्यूँ हार गए तुम।

इस नश्वर दुनिया में तुम,
मौत को क्यूँ दोस्त बना लिया
अभी और अंधियारा आता भी,
इतने से में क्यूँ हार गए तुम।

जीने का सलीका सिखाने वाले,
स्वयं सलीका भूल गए तुम
युवा जीवन की पायदान पे चढ़ते,
दुनिया से क्यूँ रूठ गए तुम।

सबके चेहरे पे हँसी लाने वाले,
स्वयं अवसाद में चले गए तुम।
इस बेखुदी दुनिया में,
जीवन से क्यों हार गए तुम…!!

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