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आशाओं के पंख

बोधन राम निषाद ‘राज’ 
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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(रचना शिल्प:१६/१४)

मन पंछी का रूप बनाकर,
चूँ-चूँ-चूँ गाना गाऊँ।
आशाओं के पंख लगाकर,
आसमान उड़ता जाऊँ॥

उड़-उड़ सारे ब्रम्हांडों की,
सैर सभी कर आऊँगा।
मन की इच्छा पूरी होगी,
तन हर्षित कर जाऊँगा॥
हरे-भरे इन बागों से मैं,
कलियाँ सभी चुरा लाऊँ।
आशाओं के पंख लगाकर…

पास सभी मंजिल भी होंगी,
पूरी होंगी इच्छाएँ।
सपनों की मैं सैर करूँगा,
नहीं रहेगी बाधाएँ॥
मीठी-मीठी नींद सुहानी,
सपनों में मैं खो जाऊँ।
आशाओं के पंख लगाकर…

सावन की रिमझिम बारिश में,
याद बहुत मुझको आती।
पिया मिलन की आशा लेकर,
अपना मन मैं बहलाती॥
सात समुंदर पार घूम कर,
नेह नयन से बरसाऊँ।
आशाओं के पंख लगाकर…

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