इलाश्री जायसवाल
नोएडा(उत्तरप्रदेश)
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पहले सिर्फ कुछ लोगों के बारे में सुनते थे कि घर से काम करते हैं। सुनकर ऐसा लगता था कि यह तो बड़ी अच्छी चीज़ है,घर में भी रहो और काम भी करो। एकल परिवारों के लिए तो यह वरदान ही है, क्योंकि आजकल के आधुनिक समय में पति-पत्नी दोनों ही नौकरी करते हैं,ऐसे में किसी एक के भी घर पर होने से बच्चे की देखभाल की जा सकती है। खैर,अब तो ऐसा लगता है कि यह सब गुजरे ज़माने की बात हो गई। इस ‘तालाबंदी’ ने सभी इमारत पर ताले ज़रूर लगवा दिए हैं,पर दुनिया के काम करने पर नहीं रोक नहीं लगी है। नवीन तकनीक के सहारे सारी दुनिया चल रही है,काम चल रहा है। लोग एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और सब लोगों ने एक नए अनुभव का स्वाद चखा,-‘घर से काम करना’,पर इस नए अनुभव से पुरानी धारणाएं टूट गईं कि घर से काम करना बहुत आरामदायक होता है, सब कुछ आसानी से हो जाता है। हकीकत एकदम अलग है। घर से काम करना,बाहर जा के काम करने से कहीं ज़्यादा मुश्किल है। न दिन का पता चलता है,न रात का। पूरा समय आप काम पर होते हो। आपके घर में एक अदृश्य बोर्ड लग गया है-’मेन एट वर्क’ यानि ‘आदमी काम पर है।’
दफ्तर जाने वाले एक कर्मचारी की दिनचर्या पर नज़र डालें तो वह अभी भी पहले की ही तरह सुबह समय से उठता है,नहा-धो कर काम पर बैठ जाता है। अब तो आने-जाने का समय भी काम के घंटे में ही जुड़ गया है। फिर शुरू होता है सुबह से फोन करने का दौर,एक के बाद दूसरी,फिर तीसरी,फिर चौथी,पाँचवीं…। कभी मोबाइल तो कभी संगणक (कम्प्यूटर),एक पर्दे से दूसरे पर्दे (स्क्रीन) पर नज़रें और उँगलियाँ दोनों फुर्ती से चलती रहती हैं। कभी ये फाइल बनाओ,डॉटा बनाओ,रिकॉर्ड चेक करो, आगे की योजना बनाओ…आदि-आदि। इन सबके बीच में आपसी खिट-पिट और खींचा-तानी भी चलती रहती है। यही सब करते-करते सुबह से शाम और फिर रात हो जाती है। पत्नी,बच्चे सब चुपचाप इधर-उधर हो जाते हैं कि कहीं शोर न हो,काम में कोई खलल न पड़ जाए। इशारों-इशारों में चाय, पानी,खाना सब आ जाता है। देर तक सब काम करते हैं,अब तो कोई यह भी नहीं कह सकता कि, मुझे घर जल्दी जाना है या मुझे देर हो रही है।
यह तो हुई दफ्तर वालों की बात,अब घर के बच्चों की बात कर लेते हैं। वे किसी से पीछे थोड़े न हैं। वे भी व्यस्त हैं ऑनलाइन कक्षा चल रही है,तैयार होकर पर्दे के सामने बैठ जाते हैं। वीडियो भी चालू करना है क्योंकि अध्यापिका को सबके चेहरे देखने हैं और उनकी उपस्थिति को सुनिश्चित करना है। ३-४ घंटे की कक्षाओं के बाद गृह कार्य दे दिया जाता है कि बच्चे घर पर हैं तो इसी बहाने थोड़ा अभ्यास हो जाएगा। बच्चा उठा और कॉपी में लग गया कि,काम पूरा करके वापिस भेज दे और आने वाली परीक्षा की तैयारी कर ले।
पढ़ाई भी जोर-शोर से चल रही है। यह समय बर्बाद थोड़े न करना है। भले ही आम दिनों की तरह ६-७ घंटे विद्यालय में नहीं बिता रहे लेकिन घर पर जीवंत कक्षाएं चल रही हैं। धीरे-धीरे ही सही,पर गाड़ी चल रही है, क्योंकि किसी को नहीं पता कि यह हालात कब तक रहने वाले हैं ? और अगर किसी तरह विद्यालय खुल भी गया तो खुलने के साथ ही बच्चों पर एकसाथ ज़्यादा बोझ पड़ जाएगा। बच्चों के बचाव के लिए समय रहते ही पूरी कोशिश की जा रही है। यह स्थिति नर्सरी से लेकर महाविद्यालय तक जाने वाले बच्चों,या कोचिंग लेने वाले बच्चों के लिए समान है।
घर की महिलाएँ भी इस अनुभव से अछूती थोड़े न हैं। अगर वे दफ्तर में काम करती हैं तो उनका भी हाल वैसा ही है,जैसा पहले पुरुषों के लिए बताया है। बस फर्क इतना है कि,दफ्तर का काम करते-करते उन्हें घर के भी काम करने पड़ते हैं,जैसे-सफ़ाई,बर्तन,कपड़े,खाना आदि,पर स्त्रियाँ अपनी बहुमुखी प्रतिभा से सारी चीजें भली-भांति कर लेती हैं। अगर वे अध्यापिका हैं,तो स्थिति थोड़ी अलग होती है क्योंकि वे ऑनलाइन बैठक की तरह ऑडियो-वीडियो बंद करके नहीं बैठ सकतीं। उन्हें तो पहले सुबह घर का काम करके बच्चों की कक्षाएं लेनी होती हैं,फिर उनका काम जाँचना,सारे रिकॉर्ड रखना,विद्यालय की बैठक में शामिल होना,कार्य तालिका बनाना,वेबिनार में उपास्थित होना,रिपोर्ट बनाना और समय-समय पर आने वाले मुख्य अवसरों को ध्यान में रखकर अलग-अलग गतिविधियाँ भी करवानी होती हैं। इन सबके बीच में घर के काम को भी अंजाम देना होता है।
अब आप ही सोचिए,शारीरिक काम करने वालों का काम भले ही एक सीमा तक रुका हो,पर मानसिक श्रम करने वालों का काम चालू है,बल्कि पहले से कहीं ज़्यादा हो रहा है। इसके चलते थकान और तनाव दोनों का ही सामना कर पड़ रहा है। कार्यालय,विद्यालय की इमारतों पर भले ही ताला लगा हो,पर काम चालू है। यह निर्णय आप पर छोड़ा कि,घर से काम करना आसान है या परेशानी वाला…।
परिचय-इलाश्री जायसवाल का जन्म १९७८ में २५ जून को हुआ हैl अमरोहा में जन्मीं हैंl वर्तमान में नोएडा स्थित सेक्टर-६२ में निवासरत हैंl उत्तर प्रदेश से सम्बन्ध रखने वाली इलाश्री जायसवाल की शिक्षा-एम.ए.(हिंदी-स्वर्ण पदक प्राप्त) एवं बी.एड. हैl आपका कार्यक्षेत्र-हिंदी अध्यापन हैl लेखन विधा-कविता,कहानी,लेख तथा मुक्तक आदि हैl इनकी रचनाओं का प्रकाशन विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं तथा पोर्टल पर भी हुआ हैl आपको राष्ट्रीय हिंदी निबंध लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार व काव्य रंगोली मातृत्व ममता सम्मान मिला हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी-साहित्य सेवा हैl इनके लिए जीवन में प्रेरणा पुंज-माता तथा पिता डॉ.कामता कमलेश(हिंदी प्राध्यापक एवं साहित्यकार)हैंl