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तुमको आना था, तो आ गए

डॉ.एम.एल.गुप्ता ‘आदित्य’ 
मुम्बई (महाराष्ट्र)

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नव वर्ष!
तुमको आना था,तो आ गए,
इसमें क्या है हर्ष!

पिछले वर्ष आए थे,
तब क्या किया ?
जो अब करोगे,
क्या पाया हमने,
पाकर तुम्हारा स्पर्श!
तुमको आना था,तो आ गए!
क्या है इसमें हर्ष!

नव वर्ष
पहले जब तुम आए थे!
तब भी मनाया था जश्न,
कितनी ही पाली थी उम्मीदें,
प्रकट किया था हर्ष,
तब कितना गम दिया,
अब क्या दोगे ?
तब भी था संघर्ष,
अब भी है संघर्ष!

नव वर्ष
तुमको आना था,तो आ गए!
क्या है इसमें हर्ष!

नव वर्ष
तुम तो हो ही नहीं,
तुम कभी थे भी नहीं,
काल-चक्र की कल्पना से जन्मे हो,
मात्र हमारी संवेदना के सपने हो
जब तुम हो ही नहीं,
तो किसी का क्या करोगे,
तुमसे नहीं,खुद से ही होगा
अपना उत्कर्ष या अपकर्ष

नव वर्ष
तुमको आना था,तो आ गए,
क्या है इसमें हर्ष!

नव वर्ष
सबका अवसान,अनिश्चित दिन,
पर तुम्हारा तो निश्चित है दिन,
हर कल,कल हो जाएगा,
जाओगे तुम हर दिन,गिन-गिन
हर शख्स समय का मीत है,
जैसे ही आया इक्कीस
बीस को सबने भुला दिया,
कल तक जो बीस के संग थे,
जाते ही धत्ता बता दिया,
मतलब की ये दुनिया.
कभी अर्श,तो कभी है फर्श,

नव वर्ष
तुमको आना था,तुम आ ही गए,
आशा है इस बार,बरसाओगे हर्ष!!

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