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तुम दीप जलाना

बोधन राम निषाद ‘राज’ 
कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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(रचना शिल्प:१६/१२,सार छंद)

दीपों से तुम दीप जलाना,
मन में प्यार जगाना।
घर-आँगन महके हर कोना,
ऐसा पुष्प खिलाना॥

दूर हटे अँधियारा जग से,
फैले ज्ञान उजाला।
कर्म साधना हो नित ऐसा,
सदा मिले गल माला॥
जगमग मन मन्दिर को करना,
हँसना और हँसाना।
घर-आँगन महके हर कोना…

प्रेम जगत में सबसे करना,
कोई नहीं पराया।
मानव जीवन मोल समझना,
कुछ दिन की है माया॥
सत्य राह पर पग धारण कर,
अपना धर्म निभाना।
घर-आँगन महके हर कोना…

खुशहाली का ले संदेशा,
आगे बढ़ते रहना।
आए गर राहों पर कंटक,
नहीं किसी से कहना॥
दीपक बनकर जलते रहना,
गीत खुशी के गाना।
घर-आँगन महके हर कोना…॥

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