सुबोध कुमार शर्मा
शेरकोट(उत्तराखण्ड)
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तुम्ही मेरी मंजिल,तुम्हीं मेरे लक्ष्य हो,
सभी कहते मुझसे तुम तो अलभ्य हो।
मन ना ही समझे ना ही जग में उलझे,
उर में बसाया है परम् शिव सत्य को॥
वेदनाएं जीवन में क्यों न असंख्य हो,
कैसे दिखाऊं मैं उर-व्रण सबको।
चेतनाएँ जब तक नहीं होगी जागृत,
निरख न सकेंगे ज्योतित ईश दृश्य को॥
समझ नहीं पाया मैं अभी मिथ्या जग को,
कैसे बनाऊं अब अपना मैं सबको।
समर्पित कर दिया जीवन को मैंने अपने,
खुश नहीं कर पाया में कभी भी जगत को॥
पञ्च तत्व से उसने इस तन को है बनाया,
सत्य तत्व का मनुज को ज्ञान है कराया।
विमुख हो गया मन इस मिथ्या जगत से,
चरण शरण में मिले स्थान इस हंस को॥
परिचय – सुबोध कुमार शर्मा का साहित्यिक उपनाम-सुबोध है। शेरकोट बिजनौर में १ जनवरी १९५४ में जन्मे हैं। वर्तमान और स्थाई निवास शेरकोटी गदरपुर ऊधमसिंह नगर उत्तराखण्ड है। आपकी शिक्षा एम.ए.(हिंदी-अँग्रेजी)है। महाविद्यालय में बतौर अँग्रेजी प्रवक्ता आपका कार्यक्षेत्र है। आप साहित्यिक गतिविधि के अन्तर्गत कुछ साहित्यिक संस्थाओं के संरक्षक हैं,साथ ही काव्य गोष्ठी व कवि सम्मेलन कराते हैं। इनकी लेखन विधा गीत एवं ग़ज़ल है। आपको काव्य प्रतिभा सम्मान व अन्य मिले हैं। श्री शर्मा के लेखन का उद्देश्य-साहित्यिक अभिरुचि है। आपके लिए प्रेरणा पुंज पूज्य पिताश्री हैं।