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मेघालय में नारी-सत्ता,और सुरक्षित भी

अवधेश कुमार ‘अवध’
मेघालय
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जंगलराज से आदमराज में परिणत होती हुई दुनिया स्त्रियों को गौड़ बनाकर पुरुष प्रधान हो गई। समाज और धर्म के समस्त विधान पुरुषों के अहंकार और महत्व के पोषक हो गए। नारी जाति क्रमश: ढकेली जाने लगी और शोषण जनित पतन के परिणाम स्वरूप गर्भ में ही मारी जाने लगी। ‘यत्र नार्येस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता’ की गरिमा से कब नारी को गिराकर गर्भ में गला काटा जाने लगा,पता ही न चला। इस एकतरफा दुर्व्यवस्था के बीच भारत के पूर्वोत्तर का मेघालय राज्य अपवाद है,जहाँ नारियों के स्वामित्व में समाज गठित एवं संरक्षित है। सामाजिक मूल्य,नैतिकता और मानव-चरित्र निर्मात्री है नारी,एवं नारियों ने ही बचा रख है नैतिकता को।
पूर्वोत्तर भारत ७ राज्यों का एक समूह है,जिसे `सेवन सिस्टर्स` के नाम से भी जाना जाता है। `मेघालय` भी इनमें से एक है जिसका शाब्दिक अर्थ `मेघों का घर` होता है। वनों और हरित पहाड़ों से इसका एक तिहाई भू-भाग सम्पन्न है। चेरापूंजी को केन्द्र बनाकर हर साल १२०० सेंटीमीटर वर्षा होने के कारण यह सर्वाधिक नमी वाला राज्य है। इसकी आबादी तकरीबन ३०,०००,०० और क्षेत्रफल २२,४२९ वर्ग किलोमीटर है। यह असम की गोद में स्थित है,जिसकी दक्षिणी सीमा बांग्लादेश से संलग्न है। शिलॉंग (प्राचीन नाम शिवलिंग) इसकी राजधानी है। मेघालय नाम अति प्राचीन है जो इस परिक्षेत्र को कहते हैं। पहले यह असम राज्य का हिस्सा हुआ करता था। २१ जनवरी १९७२ को असम के २ जिलों जयन्तिया हिल्स और यूनाइटेड खासी हिल्स को मिलाकर मेघालय राज्य का गठन किया गया। खनिज सम्पदा से भरपूर मेघालय की मूल आय कृषि से प्राप्त होती है। पर्यटन और उद्योग धंधों का भी यहाँ उल्लेखनीय स्थान है। यहाँ की साक्षरता तकरीबन ७५.५ फीसद है। प्राथमिक विद्यालयों से लेकर विश्वविद्यालय एवं प्राविधिक शिक्षा के लिए पॉलीटेक्निक महाविद्यालय से मेघालय सम्पन्न है। यहाँ की सर्वाधिक अनूठी व्यवस्था जिला परिषद है। मेघालय चूँकि,जनजाति बहुल राज्य है इसलिए
रीति-रिवाज की विविधता यहाँ की विशेषता है,जिसको संरक्षित रखने का दायित्व जिला परिषद का है। न्याय का प्राथमिक दायित्व भी जिला परिषद का है। यह राज्य छोटे-छोटे इलाकों में बँटा हुआ है और हर इलाके का एक `दोलोई` होता है,जो एक बार बनने के बाद आजीवन इस पद पर बना रहता है। यह बेहद जिम्मेवारी भरा एवं क्षमता सम्पन्न पद होता है। उसकी मृत्यु के छ: महीने की अवधि में इलाके द्वारा दूसरे दोलोई को चयनित करना होता है।
यहाँ की ज्यादातर आबादी आदिवासी लोगों की है। खासी,गारो,जयन्तिया,मिकिर,महार बोरो और लखर समूह के लोग यहाँ पाए जाते हैं। यहाँ ७०.३ फीसदी इसाई,शिलॉंग शहर में बहुतायत सेवानिवृत्त सैनिक एवं लगभग ५० हजार नेपाली रहते हैं। यहाँ लिंगानुपात ९८६ महिलाएँ प्रति १००० पुरुषों पर हैं। मेघालय की अनुपम छटा को देखकर ही अंग्रेजों ने इसे `स्कॉटलैंड` नाम दिया होगा।
उद्योग धंधों की दृष्टि से भी यह राज्य अब महत्वपूर्ण है। वर्षों पहले यहाँ उद्योग विकसित नहीं था। शिलॉंग के आस-पास के क्षेत्रों तथा चेरापूंजी में पर्यटन के उद्देश्य से न केवल भारत,बल्कि विदेशों से भी लोग आते थे और अभी भी आते हैं। उनके पर्यटन में सहयोग के रूप में आवागमन के साधन, होटल,शाकाहारी तथा मांसाहारी खाना,हाथों से निर्मित वस्तुएँ एवं मार्ग निर्देशक आदि उपलब्ध कराने होते थे,जिन्हें लघु व्यवसाय की संज्ञा प्राप्त थी। चीड़ के गगनचुम्बी वृक्षों की झुरमुट से सरसराती हवा,झरनों से झरते पानी की कल-कल,गुफाओं की अनजानी मंजिलें और बादलों की आँख-मिचौनी अनायास ही चित्ताकर्षित कर लेते हैं। छोटे-छोटे संतरों के खट्टे-मीठे स्वाद रसना को तृप्त करते हैं। यहाँ की प्रमुख स्थानीय भाषा `खासी` है,जिसमें कई बोलियाँ हैं। स्थान परिवर्तन के कारण शब्दों और लहजे में बहुत परिवर्तन दृष्टिगोचर होता है। प्रकृति के साहचर्य के कारण यहाँ के लोगों के उच्चारण में नैसर्गिक एवं वन्य ध्वनियों का विशेष असर मिलता है। खासी लेखन के लिए रोमन लिपि का प्रयोग होता है,जो अनायास ही अंग्रेजी से इसकी नजदीकी का सबूत है। खासी भाषा के सम्बंध में हो रहे शोध कार्यों से पता चलने लगा है कि,यद्यपि इसकी लिपि रोमन है तथापि इसका सम्बंध हिंदी और बांग्ला से प्रगाढ़ है। दूसरे शब्दों में यह भी संस्कृत की बेटी है। इसके शब्दों का विश्लेषण करने से पता चला है कि इसमें हिंदी के शब्दों की बहुलता है। अंग्रेजों द्वारा पूर्वोत्तर की राजधानी शिलॉंग बनाए जाने तक खासी को बांग्ला लिपि में लिखा जाता था। हुकूमत की सुविधा के लिए फिरंगियों ने इसका अंग्रेजीकरण कर दिया।
सीमेंट उद्योग ने मेघालय के वन्य जीवन को काफी प्रभावित किया है। ईस्ट जयन्तिया हिल्स जिले में मात्र १५ किलोमीटर के परिक्षेत्र में ८ सीमेंट फैक्ट्रियों का होना महत्वपूर्ण है। सीमेंट बनाने के लिए आवश्यक समस्त कच्चे खनिज मेघालय में न सिर्फ उपलब्ध हैं,बल्कि न्यूनतम दर पर सुलभ भी हैं। भोले-भाले जनजाति के लोगों से हर तरह का सहयोग लेना भी सरल और सस्ता है। सीमेंट के इस उद्योग ने अत्यधिक खनिजों के उपभोग द्वारा पर्यावरण को न्यूनाधिक नुकसान पहुँचाया है,किन्तु इसके विपरीत फायदा बहुत पहुँचाया है। समस्त पूर्वोत्तर में मेघालय में निर्मित सीमेंटों की उपलब्धता ने रोजगार और आवासीय क्रांति ला दी है। आवास निर्माण के लिए लागत मूल्य पर सीमेंट,सम्बंधित गाँवों की सड़कें,शिक्षा के लिए विद्यालय,धार्मिक आस्था का सम्मान करते हुए गिरजाघर और हजारों लोगों को नौकरी-रोजगार दिया है। महिलाओं की आर्थिक स्थिति पहले से मजबूत हुई है। आर्थिक मजबूती प्राय: नैतिकता की उन्नति में सहायक होती है।
समस्त भारत में मेघालय संतान के सन्दर्भ में अनूठा राज्य है। मातृ सत्तात्मक व्यवस्था होने के कारण सर्वाधिकार स्त्रियों को प्राप्त है। परिवार में मुखिया के रूप में महिला का ही नाम होता है। यहाँ के पुरुष प्राय: एक गृहणी की तरह घर का काम तथा कभी-कभी बाहर निकलकर छोटे-मोटे काम करते हैं। इसके विपरीत घर चलाने का मुख्य दायित्व महिलाएं सम्हालती हैं। दुकान,व्यवसाय तथा नौकरियों में भी अधिकांश संख्या इनकी ही है। मेघालय में उच्च पदस्थ अधिकांश अधिकारी महिलाएँ ही हैं। परिवार में मातृक सम्पत्ति पर समस्त अधिकार छोटी बेटी का होता है। उसकी इच्छा पर निर्भर है कि वह बड़ी बहनों को कुछ दे या न दे। साथ ही उसके सभी भाई विवाह करने के साथ ही ससुराल में विदा हो जाते हैं। खानदान की संवाहक बेटे नहीं,बल्कि बेटियाँ होती हैं जो माँ की जाति,कुल,वंश से जानी जाती हैं। बेटी का जन्म होना मंगलकारी माना जाता है,मिल-जुलकर लोग खुशियाँ मनाते हैं। कुछ साल पहले तक बच्चों की पहचान सिर्फ माता से होती थी,किन्तु अब माँ और बाप दोनों का नाम लिखना होता है। दहेज के दानव और महिला उत्पीड़न से यह राज्य लगभग अछूता होने के कारण महिलाओं के लिए स्वर्ग कहलाता है। अब स्थितियाँ थोड़ी भिन्न हैं। बाहरी पुरुषों द्वारा यहाँ की भोली-भाली लड़कियों को प्रेमजाल में फँसाकर धोखा देने की कुछ घटनाएं होने लगी हैं। `लिव इन रिलेशनशिप` का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है,जो चिंताजनक है।
मेघालय में सड़क परिवहन बहुत अच्छा है। हेलीकॉप्टर द्वारा लगभग आधे घंटे में गुवाहाटी से शिलॉंग तक हवाई यात्रा कर सकते हैं। रेलवे मार्ग का विस्तार अभी नहीं हो सका है। गुवाहाटी से १२८ किलोमीटर दूर शिलॉंग एवं शिलॉंग से ५८ किलोमीटर चेरापूंजी और वहीं पास में मावसिनराम है,जो दुनिया में सर्वाधिक वर्षा के लिए ख्यातिलब्ध है। मावसिनराम की पहाड़िया शिवलिंग के आकार की दिखती है। जोवाई के निकट `नॉर्तियांग` नामक स्थान पर माता जयन्तिया का प्राचीन मन्दिर है और वहाँ से कुछ दूरी पर भैरव बाबा हैं। मेघालय में आने वाले हिन्दू दर्शनार्थी प्राय: माँ का दर्शन करते हैं। आस-पास के गाँवों में अभी भी हिन्दू लोग रहते हैं। आवागमन की सुविधा और उद्योग-धंधों के विकास ने मेघालय को न केवल पूर्वोत्तर,बल्कि समस्त भारत से जोड़ दिया है। देश के हर कोने से रोजगार की तलाश में उच्च शिक्षित से लेकर मजदूर लोग यहाँ आते रहते हैं,जिसमें सर्वाधिक संख्या हिंदी भाषियों की है। इसके परिणाम स्वरूप यहाँ हिंदी सम्पर्क भाषा के रूप में लोकप्रिय हो रही है। गिरजा के घंटों की गड़गड़ाहट में गृह मंदिरों से घंटियों की घनघनाहट विविधता में एकता की परिचायक है। स्थानीय त्यौहारों में यहाँ के लोग महिलाओं के नेतृत्व में खुलकर भागीदारी करते हैं। मछली पकड़ने की प्रतियोगिता बड़े पैमाने पर रखी जाती है। अभी भी साप्ताहिक आवर्ती हाट व्यवस्था कुछ मील की दूरियों पर संचालित है,जहाँ दैनिक जीवन की वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता है। एशिया का सबसे स्वच्छ गाँव `मावलिन्नॉंग` भी मेघालय में है,जिसके लिए यहाँ के लोग प्रशंसा और प्रेरणा के पात्र हैं।
यहाँ इसाईयों की बहुलता के कारण `क्रिसमस` का त्यौहार हर क्षेत्र में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त पनार जाति के लोगों द्वारा अप्रेल से मई तक बीज बोने से पहले देवी-देवताओं की पूजा करके `चाड सुका` त्यौहार मनाया जाता है। फसल पैदा होने पर चावल का पहला हिस्सा देवी- देवताओं को चढ़ाते हुए `वांगला` पर्व मनाते हैं। अच्छे स्वास्थ्य एवं सफलता की कामना करते हुए जोवाई के लोग तीन दिनों तक बेहदिन्ख्लाम पर्व मनाते हैं। शिलॉंग के युवा-युवती पारम्परिक परिधान में सज-धजकर लोक संगीत पर लोकनृत्य करते हैं। बसंत ऋतु में मनाये जाने वाले इस त्यौहार को `शाद सुक माय्नसीम` कहते हैं। बलि प्रथा को जीवित रखते हुए कुछ त्यौहारों में मुर्गी-बकरियों की बलि भी दी जाती है। इसमें सर्वनिष्ठ यह है कि आपसी मेल-जोल के साथ सभी लोग स्थानीय लोक संस्कृति से जुड़े होते हैं।
वैसे तो वृहत्तर भारत ही सनातन धर्मी रहा है,किन्तु समय चक्र ने कई धर्मों और सम्प्रदायों को व्युत्पन्न किया है। मेघालय का मूल सनातन धर्म कालान्तर में बौद्ध,जैन,मुस्लिम से होता हुआ इसाई पर आकर ठहर गया। इसका परिणाम यह हुआ कि इस छोटे से राज्य में संस्कृतियों एवं मान्यताओं की विविधता बहुआयामी है। जैसे शिवलिंग हो गया शिलॉंग,वैसे ही बहुत-सी जातियों के नामों में कमोबेश परिवर्तन हो गया। शिवलिंग के उपासक शैव वर्तमान में लिंगदोह कहलाने लगे…….।
यहाँ की नारी अबला न होकर सक्षम सबला है। पुरुष को नारी की मर्जी से चलना पड़ता है। हर महत्वपूर्ण कार्य नारी करती है और गौड़ कार्य नारी के निर्देश से पुरुष। नारी अस्मिता पूरी तरह सुरक्षित है। छेड़खानी या दुर्व्यवहार नारियों के साथ नहीं होता। दिन हो या रात,नारियाँ स्वैच्छा से कहीं और किसी के साथ बेरोक टोक आ-जा सकती हैं। एकाधिक बेटियाँ पैदा कर सकती हैं। निकम्मे पति को पत्नियाँ घर से बाहर निकाल सकती हैं। मातृसत्ता और स्त्रियोचित गुणों की प्रतिष्ठा किसी भी समाज को आदर्श बना सकती है। इन्हीं मातृसत्तात्मक विशेषताओं के कारण मेघालय धरती पर महिलाओं के लिए स्वर्ग माना जाता है। वस्तुत: यह नैसर्गिक स्वर्ग भूमि नैतिकता की वैविध्यतापूर्ण पराकाष्ठा को अपने आँचल में सँजोए हुए है।

परिचय-अवधेश कुमार विक्रम शाह का साहित्यिक नाम ‘अवध’ है। आपका स्थाई पता मैढ़ी,चन्दौली(उत्तर प्रदेश) है, परंतु कार्यक्षेत्र की वजह से गुवाहाटी (असम)में हैं। जन्मतिथि पन्द्रह जनवरी सन् उन्नीस सौ चौहत्तर है। आपके आदर्श -संत कबीर,दिनकर व निराला हैं। स्नातकोत्तर (हिन्दी व अर्थशास्त्र),बी. एड.,बी.टेक (सिविल),पत्रकारिता व विद्युत में डिप्लोमा की शिक्षा प्राप्त श्री शाह का मेघालय में व्यवसाय (सिविल अभियंता)है। रचनात्मकता की दृष्टि से ऑल इंडिया रेडियो पर काव्य पाठ व परिचर्चा का प्रसारण,दूरदर्शन वाराणसी पर काव्य पाठ,दूरदर्शन गुवाहाटी पर साक्षात्कार-काव्यपाठ आपके खाते में उपलब्धि है। आप कई साहित्यिक संस्थाओं के सदस्य,प्रभारी और अध्यक्ष के साथ ही सामाजिक मीडिया में समूहों के संचालक भी हैं। संपादन में साहित्य धरोहर,सावन के झूले एवं कुंज निनाद आदि में आपका योगदान है। आपने समीक्षा(श्रद्धार्घ,अमर्त्य,दीपिका एक कशिश आदि) की है तो साक्षात्कार( श्रीमती वाणी बरठाकुर ‘विभा’ एवं सुश्री शैल श्लेषा द्वारा)भी दिए हैं। शोध परक लेख लिखे हैं तो साझा संग्रह(कवियों की मधुशाला,नूर ए ग़ज़ल,सखी साहित्य आदि) भी आए हैं। अभी एक संग्रह प्रकाशनाधीन है। लेखनी के लिए आपको विभिन्न साहित्य संस्थानों द्वारा सम्मानित-पुरस्कृत किया गया है। इसी कड़ी में विविध पत्र-पत्रिकाओं में अनवरत प्रकाशन जारी है। अवधेश जी की सृजन विधा-गद्य व काव्य की समस्त प्रचलित विधाएं हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा एवं साहित्य के प्रति जनमानस में अनुराग व सम्मान जगाना तथा पूर्वोत्तर व दक्षिण भारत में हिन्दी को सम्पर्क भाषा से जनभाषा बनाना है। 

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