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अजीब काल है

संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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हे सूर्यदेव आप भरे ताप से मालामाल हैं,
बिन पानी की धरती मैया दिखा रही अकाल है
मेघनाथ डर भागे हैं, गर्जन-वर्षा को तरसे अजीब काल है
हे महाकाल ये आपका कौन- सा नया मायाजाल है ?
पानी-बिजली की किल्लत से मचा हाहा-कार है,
अंतिम चरण के मतदान की दलगत जय-जयकार है
घूँट पसीने के पी-पीकर वोट हमारा अधिकार है,
पुण्य बटोरने वाले पेयजल स्वामी अबकी दिखते बीमार है।

तरस रहे हर पशु-पक्षी मरते कटते दिखते लाचार हैं,
इस भीषण गर्मी में राजनीति करने वाले की आई बहार है
संसद तक सब जाएंगे, लेकिन पेड़ कटवाने में सब खुद्दार हैं,
लोकतंत्र का अर्थ न जाने उन नजरों में जनता मूर्ख बेकार है।

अभी भी वोटर तरस रहे, नाम सूची में उनके बरकरार हैं,
नौकरी करने वाले बैंगलोर, पुणे, नोएडा, हैदराबाद से बेकरार हैं
चुनाव आयोग को धन्यवाद जिसने मतदान को दिया उत्तम आकार है,
पूरे देश में जनता को प्रत्याशी अस्वीकार है।
बस पार्टी और उसके नेता को अब मापदण्ड का अधिकार है,
नेता की ईमानदारी, चरित्र की कसौटी मक्कार है
विपक्ष का नेता वफादार तो अपनी पार्टी का नेता अब गद्दार है,
क्या कहना इस लूटतंत्र को, ‘लोकतंत्र’ भी शर्मसार है।
जनता राष्ट्र के हित में वोट करे, लेकिन शासन से ना उम्मीद के आसार है,
भगवान सूर्यदेव की गर्मी से हुई दुनिया त्राहिमाम हार है,
प्रचंड गर्मी में भी लोकतंत्र की संसद में प्रवेश का खुला द्वार है,
कोई कहता-अबकी आँकड़ा मेरा पार, जनसमर्थन अपार है।

कोई कहता उस दल के आँकड़े बिल्कुल बेकार है,
देखना है, होता क्या है ? मतपेटियों से देश को भविष्य का इंतज़ार है।
ये भारत है यारों मेरे देश की प्रबुद्ध जनता का फैसला धारदार है,
हाल बुरा हाल, गर्मी कमाल है, बारिश भी आने दो होती मूसलधार है॥

परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको
महात्मा बुद्ध सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”