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आइए, भाषाओं के मान-सम्मान की मुहिम एकसाथ मिलकर लड़ें

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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राष्ट्र में सभी का सम्मान करता हूँ, पर एक बात समझ से परे है कि क्यों आजाद भारत की राष्ट्र भाषा हिन्दी नहीं बनाई गई ? क्यों भारत की प्रतिष्ठित भाषाओं का तिरस्कार करके अंग्रेजी को ही भारत की अघोषित राष्ट्र भाषा घोषित किया गया ? सोचिए।
आज जो भी मीडिया अपने वीडियो बना-बना कर जनता को जगाने के लिए भेजते हैं, वह सब अंग्रेजी में क्यों नहीं बनाते ? जब हमारे भारत में शासकीय, प्रशासकीय, न्यायालय की, चिकित्सा की और उच्च शिक्षा के माध्यम की भाषा भी सब अंग्रेजी है तो फिर आप क्यों जन-सम्पर्क के कार्यों को यानी अपनी पत्रकारिता हिन्दी में कर रहे हैं ? इसलिए न कि, यह भाषा भारत की अधिकांश जनता को समझ आती है ! हाँ, यही सच्चाई है कि, हिन्दी और संस्कृत के साथ इनकी उप भाषाएं भारतीयों को अच्छे से समझ में आती है। सभी नेता मत हिन्दी में मांगते हैं और शासन अंग्रेजी में चलाते हैं, यह दोहरा मानदंड क्यों ?
फिल्मी अभिनेता-निर्देशक इन्हीं भारतीय भाषाओं में फिल्म बनाते हैं और खूब पैसे कमाते हैं पर, जब निजी जिन्दगी या मीडिया साक्षात्कार में आते हैं तो लग जाते हैं अंग्रेजी बोलने। यही दोगली भाषा नीति जनता को सिखाई जा रही है। १९४९ से यही खेल चला आ रहा है। क्या यह हमारी अंग्रेजी की गुलामी की मानसिकता का परिणाम नहीं है ?
विद्यालय-महाविद्यालयों में अंग्रेजी पढ़ाने वाले और अंग्रेजी माध्यम में विज्ञान की शिक्षा देने वाले शिक्षक बीसियों बार बीच में हिन्दी या अपनी भाषा बच्चों को समझने के लिए बोलते हैं। आम बातचीत में अंग्रेजी के साथ हिन्दी ही बोलते हैं। जहां अंग्रेजी बोलते- बोलते उन्हें किसी बात को स्पष्ट करने के लिए शब्द ही नहीं मिलता, वहां लग जाते फिर हिन्दी या हिन्दी की उप भाषाएं बोलने।फिर भी पैरवी करते हैं अंग्रेजी की ? भला क्यों ? आज हम न ही तो हिन्दी को छोड़ सके हैं और न ही अंग्रेजी के बन पाए हैं।कितनी बड़ी विडम्बना है ?
अरे भाई, अंग्रेज भारत से कब के चले गए हैं।अब तो हिन्दी के माध्यम से कमाई करने वाले हर मीडिया को हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने की मांग मुक्त कंठ से करनी चाहिए।
अब बात ताजा मामले यानि राजदण्ड (सिंगोल) की तो राजदण्ड सत्ता और कांग्रेस की लड़ाई है। यदि राजदण्ड पं. नेहरू को प्रधानमन्त्री रहते दिया गया था तो फिर यह सच में संग्रहालय में रखने लायक नहीं था। यह उन्हें संसद भवन में ही विशेष रूप से रखना चाहिए था। यदि दिया ही नहीं था तो, फिर झुठला कर सिद्ध करें। जनता को सभी दल हमेशा से मूर्ख बनाते आए हैं। आप हिन्दी मीडिया से क्यों इतने डरे हैं ?, इसलिए कि इस भाषा को भारत की अधिकांश जनता समझती है। गढ़े मुर्दों को उखाड़ना न ही तो सत्ता के लिए ठीक है, न ही विपक्ष हेतु।
बस, हिन्दी को दबाने की कोशिश कोई न करे। विशेष कर मीडिया को हिन्दी को राष्ट्र भाषा घोषित करने की मांग मुखरता से उठानी चाहिए, क्योंकि हिन्दी की कृपा से आज भारत का हर मीडिया कमा रहा है और अपना भाव-बोध जनता को समझा रहा है।यही हाल नेताओं और फिल्म अभिनेताओं का है।
जब सभी विकसित देशों में उनकी अपनी भाषा राष्ट्रभाषा बनी है तो फिर भारत की अपनी भाषाएं इस हक से वंचित क्यों ? भले ही आप यह तर्क दें कि, अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। इसे तरजीह देना जरूरी है तो चीन और जर्मनी जैसे देश पागल हैं क्या ? जिन्होंने अपनी राष्ट्रभाषा घोषित कर रखी है।
भारत में तो १०-१५ साल मात्र अंग्रेजी ही सीखने में बच्चे को लग जाते हैं, फिर कहीं वह अन्य अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाए जाने वाले गहन विषयों की गहनता को धीरे-धीरे समझने लगता है। उतने में तो दुनिया के अन्य बच्चों ने अपनी भाषा में शिक्षा ले कर महारत हासिल कर ली होती है। फिर कहो कि, क्या यह हमारे बच्चों के साथ चालाकी या धोखा नहीं है ?
आइए, भारतीय भाषाओं के मान-सम्मान की मुहिम एकसाथ मिलकर राष्ट्र हित में सभी दल और प्रतिष्ठित लोग लड़ते हैं। अपने सारे गतिरोध और स्वार्थ एक ओर रखते हैं और हिन्दी तथा इसकी उप भाषाओं को सम्मानित करते हैं।

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