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आतंक का जवाब आतंक नहीं

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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२००८ में अहमदाबाद में हुए आतंकी हमले के अपराधियों को विशेष अदालत ने जो सजा सुनाई है, वह स्वतंत्र भारत की सबसे बड़ी सजा है। इसमें ३८ अपराधियों को मृत्युदंड, ११ को उम्रकैद और ४८ पर २.८५ लाख का जुर्माना लगाया गया है। इसके पहले राजीव गांधी हत्याकांड में २६ लोगों को सजा-ए-मौत हुई थी। इस आतंकवादी हमले में ५६ लोग मारे गए थे और २४० लोग घायल हुए थे। इस मुकदमे का फैसला आने में १४ साल लग गए। इन अपराधियों को यदि साल-दो साल में ही फांसी पर लटका दिया जाता तो इस सजा का कहीं ज्यादा असर होता लेकिन सैकड़ों गवाहों से पूछताछ और पुलिस की खोजबीन अच्छी तरह से इसीलिए की गई कि न्याय में कमी न रह जाए। न्यायाधीशों ने गहराई में जाकर निष्पक्ष फैसला करने की कोशिश की है। ७ हजार पृष्ठ के इस फैसले में ७७ आरोपियों में से २२ को बरी कर दिया गया है। यदि यह फैसला जल्दबाजी में होता तो ये २२ लोग भी लटका दिए जाते। इस फैसले को सांप्रदायिक नजरिए से देखना भी उचित नहीं है। इस आतंकी हमले की सारी पोल जिसने खोली है, वह भी एक मुसलमान ही है। भारत के औसत मुसलमानों को भी इस आतंकवादी हादसे ने बुरी तरह आहत किया था। इस हमले की जिम्मेदारी ‘इंडियन मुजाहिदीन’ और ‘स्टूडेंटस इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया’ नामक संगठनों ने ली थी। इसमें गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र, केरल और कर्नाटक के आतंकवादी भी शामिल थे। एक अर्थ में यह देश के सभी मुसलमानों को बदनाम करने वाले संगठन थे। इनके सज़ायाफ्ता लोग में २१ से ४० साल के लोग भी हैं। ये लोग गोधरा कांड के बाद हुए दंगों का बदला लेने पर उतारु थे। इन्होंने अपने आतंकी विस्फोटों की झड़ी भारत के दूसरे शहरों में भी लगाई थी। इन्हें शायद पता नहीं है कि इनके विस्फोटों में मरे लोगों में हिंदू और मुसलमान दोनों ही थे। इन आतंकियों ने अपना निशाना तो गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और अन्य मंत्रियों को बना रखा था। ज़रा सोचिए कि यदि ये लोग अपने इरादों को अंजाम दे पाते तो देश के करोड़ों निर्दोष मुसलमानों की दशा क्या होती ? २००२ में गुजरात के दंगों में मारे गए मुसलमानों के प्रति देश के सभी हिंदुओं और मुसलमानों को काफी अफसोस था,लेकिन आतंकवादी हरकतों ने उस अफसोस को भी नदारद कर दिया। इन आतंकवादियों को अब जो कड़ी सजा मिल रही है, उसके कारण बहुत-से लोगों को बड़े पैमाने पर सबक भी मिलेगा। सबक यह है कि कोई भी आतंकी कितनी ही चालाकी करे, वह न्याय के शिकंजे में फंसे बिना नहीं रहेगा। जिन परिवारों ने इस आतंकी हमले में अपने प्रियजनों को खोया है, उनके घावों पर यह मरहम भी कुछ काम नहीं करेगा। कुछ मुस्लिम संगठन अदालत के इस फैसले पर सांप्रदायिक रंग चढ़ा रहे हैं लेकिन उन्हें पता होना चाहिए कि भारत की अदालतें अपने फैसले जाति और मजहब के आधार पर नहीं करती हैं। आतंकवादी कोई हो, हिंदू या मुसलमान, उसे कठघरे में खड़े होना ही पड़ेगा और अपने किए का फल भुगतना ही पड़ेगा। इस फैसले ने यह सिद्ध किया है और इसका यही संदेश है कि आतंक का जवाब आतंक नहीं हो सकता।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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