संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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जयंती (९ सितम्बर) विशेष….
अवधी-ब्रज बेमेल का हिन्दी में किया था मेल,
काशी के हरिश्चंद्र का भारत में हिन्दी प्रयोग व खेल
आशीष बाबा विश्वनाथ का पाकर चिंतन में भगवन् की सेल (कोशिका),
दोहा, चौपाई, छन्द हो, नाटक, कथा, गद्य-पद्य काल भैरव की कृपा से अंगुली पर सारे खेल।
पिता के सारे छन्द, चौपाई, दोहे काट दें, बोलें यह पूरे बेमेल,
खुद फिर से वो ऐसा गढ़ते, जैसे शब्द छन्द तुकबंदी मेल
अल्पायु में सबको कर देते नतमस्तक शब्दों के खेल,
पिता भी इनको मान गए प्रतिभावान विलक्षण मेल।
लेखन हिन्दी भाव जगाया आज़ादी का अद्भुत खेल,
सबके समझ में आई हिन्दी भाषा, गढ़ते शब्दों के ताल-मेल
जगी जवानी वीरों की, संघर्ष पर उतरे जवाँ मिटा डर से जेल,
जिस ओर जवानी चले, उस ओर जमाना चले, भीड़ में रेलम-रेल।
आज़ादी के आंदोलन में न रुकी लेखनी धार,
भारतेंदु की कलम का मुकाबला क्या करती तलवार ?
शब्द, छन्द के जादू का विस्फोट हो ताकतवर,
आग सुलगती अंग्रेजों को, चाहे अधिकारी हो कद्दावर।
आधुनिक हिन्दी जनक भारतेंदु ने बताया आज़ादी निज भाषा का खेल,
देशप्रेम का भाव जगाया, गद्य-पद्य, दोहे-नाटक से रखते आगे सबको ठेल
हिन्दी भाषा आज़ादी का मूलमंत्र बना, आपस के रिश्तों का मेल,
होते गए विफल फिरंगी, योजना अंग्रेजों की हो गई फेल।
हिन्दी देशव्यापी हुई, फैला दूर देश तक संदेश,
भारतेंदु ने काव्य, लेख, नाटक से बदला आंदोलन का परिवेश
इस हिन्दी के दम पर हमने पाया आज़ाद चमन-स्वतंत्र देश,
आपकी हिन्दी बोल रहे हम, फैल रहा है देश-विदेश।
आज़ादी का शिखर पुरुष बन चाँद हो गए भारत का,
जन-जन ने भारतेंदु बनाया, नाम बढ़ाया भारत का
संस्कृत, ब्रज-अवधी को जोड़ ‘हिन्दी’ को बनाया भारत का,
जन-सुलभ हुई हिन्दी भाषा, संवाद मुख्य यह भारत का।
विश्वनाथ का अलख जगाया, सम्मान बढ़ाया काशी का,
हिन्दी-हिंदू-हिंदुस्तान से मान बढ़ाया काशी का।
भारतेंदु ने शब्द-भाव से उत्कर्ष बढ़ाया काशी का,
अजर-अमर हो कृति आपकी, अभिमान हो हिन्दीभाषी का॥
परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको
महात्मा बुद्ध सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”