डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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सुना है सबमें तुम्हीं समाए,
बात ये कैसी समझ के पार।
दुखिया मन, विवश पड़ी है,
हो गयी दर्शन को बेकरार।
चरण कमल की शरण में,
कान्हा, आई मैं तेरे द्वार।
समझ सकी ना माया तेरी,
जग का तू ही है पालनहार।
लोभ, मोह में भूल गयी सब,
है मिथ्या सकल संसार॥
चरण कमल की शरण में
कान्हा, आई मैं तेरे द्वार…।
माना, ना मैं राधा जैसी,
ना सुदामा-सा व्यवहार।
बनूं तेरे चरणों की दासी,
इतना भी तो कर उपकार॥
चरण कमल की शरण में
कान्हा आई मैं तेरे द्वार…।
मन मैला, ना भावना भरी,
ना सुन्दर रूप मनुहार।
बीच भंवर में नैया अटकी,
कर दे भवसागर मोहे पार॥
चरण कमल की शरण में
कान्हा, आई मैं तेरे द्वार…॥