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खतरनाक यह अल्पसंख्यकवाद

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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सर्वोच्च न्यायालय में एक बड़ी मजेदार याचिका पेश की गई है अश्विनी उपाध्याय द्वारा! उन्होंने अपनी याचिका में तर्क दिया है कि अल्पसंख्यकता के नाम पर कई राज्यों में बड़े पैमाने पर ठगी चल रही है। जिन राज्यों में जो लोग बहुसंख्यक हैं, वे यह कहते हैं कि हम लोग अखिल भारतीय स्तर पर अल्पसंख्यक हैं, इसलिए हमें अल्पसंख्यकों की सब सुविधाएं अपने राज्य में भी मिलनी चाहिए। जैसे जम्मू-कश्मीर में मुसलमान बहुसंख्यक हैं लेकिन उन्हें इसके बावजूद वहां अल्पसंख्यकों की सारी सुविधाएं मिलती हैं, किन्तु जम्मू-कश्मीर के हिंदुओं, यहूदियों और बहाईयों को, जो वास्तव में वहां अल्पसंख्यक हैं, उन्हें अल्पसंख्यकों की कोई सुविधा नहीं मिलती। यही हाल मिजोरम, नागालैंड, अरुणाचल, लक्षद्वीप, मणिपुर और पंजाब का है। इन राज्यों में रहनेवाले धार्मिक बहुसंख्यकों को भी अल्पसंख्यक मानकर सारी विशेष सुविधाएं दी जाती हैं। श्री उपाध्याय ने याचिका में अदालत से मांग की है कि अल्पसंख्यकता का निर्णय राज्यों के स्तर पर भी होना चाहिए,ताकि वहां के अल्पसंख्यकों को भी न्याय मिले। तर्क की दृष्टि से श्री उपाध्याय बिल्कुल ठीक हैं लेकिन बेहतर तो यह हो कि देश में मजहब, भाषा और जाति के आधार पर समूहों को बांटा न जाए। राष्ट्रीय एकता के लिए यह बेहद जरुरी है। दूसरे शब्दों में संख्या के आधार पर बना यह विशेष दर्जा राज्य स्तरों पर तो खत्म होना ही चाहिए। यह भी जरुरी है कि इसे अखिल भारतीय स्तर पर भी खत्म किया जाए। १९४७ में भारत का बंटवारा इसी मजहबी संख्यावाद के कारण हुआ और अब देश के चुनाव और राजनीति का आधार यही जातिय संख्यावाद बन गया है। यही क्रम आगे चलता रहा तो १९४७ में भारत के सिर्फ २ टुकड़े हुए थे, लेकिन २०४७ में भारत के १०० टुकड़े भी हो सकते हैं। यह बेहद खतरनाक प्रक्रिया है। महाराष्ट्र और कर्नाटक ने संविधान के ढीले-ढाले प्रावधानों का सहारा लेकर मज़हबी और भाषाई आधार पर अपने नागरिकों को बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक वर्गों में बांट रखा है। हमारी केंद्र सरकार ने उक्त याचिका का समर्थन करते हुए संवैधानिक प्रावधान का हवाला भी दे दिया है। संविधान में ऐसा करने की छूट है, लेकिन किसी भी राष्ट्रवादी सरकार को हिम्मत करनी चाहिए कि वह इस राष्ट्रभंजक संवैधानिक प्रावधान को खत्म करवाए और देश के सभी नागरिकों को उनकी जरुरत के मुताबिक (जाति और धर्म के आधार पर नहीं) आवश्यक विशेष सुविधाएं अवश्य दी जाएं।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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