दिल्ली
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जम्मू एवं कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने की चुनाव आयोग की घोषणा निश्चित ही लोकतंत्र की जड़ों को मजबूती देने के साथ क्षेत्र के लिए विकास के नए दौर के द्वार खोलने का माध्यम बनेगी। यहाँ ९० सीटों पर चुनाव होने हैं, जिसमें जम्मू-कश्मीर के लोग सक्रिय रूप से भाग लेकर और बड़ी संख्या में मतदान कर ऐसी सरकार बनाएं, जो शांति और विकास के नए द्वार उद्घाटित करते हुए युवाओं के लिए उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित करे एवं आतंकमुक्ति का एक नया अध्याय रचे। आज सबकी आँखें एवं कान चुनावी सरगर्मियों एवं भविष्य में निकलने वाले जनादेश पर लगी हैं। ये चुनाव बहुत महत्वपूर्ण होने के साथ प्रांत में नई उम्मीदों के नए दौर का आगाज है। इस बार के चुनाव अब तक हुए चुनावों से अलग है और खास है।
जम्मू-कश्मीर में तमाम बड़ी पार्टियों के बीच असमंजस और अनिश्चितता जैसे खत्म होने का नाम नहीं ले रही। हालांकि, कुछ हद तक इस तरह की अनिश्चितता हर चुनाव में होती है, लेकिन जम्मू-कश्मीर के मामले में हालात सामान्य से ज्यादा जटिल हैं और इस असमंजस के पीछे उसकी भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। विपक्षी खेमे में माने जाने वाले राज्य के तीनों प्रमुख दलों में सहयोग और संघर्ष का दिलचस्प घालमेल दिख रहा है। नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के बीच सभी सीटों पर गठबंधन की घोषणा कर दी गई है। पीडीपी इस गठबंधन से बाहर है। फिर भी मुद्दों की एकरूपता के चलते न सिर्फ उमर अब्दुल्ला उससे अपनी पार्टी के खिलाफ प्रत्याशी न खड़ा करने को कह रहे हैं, बल्कि महबूबा भी कह चुकी हैं कि अगर उनके कार्यक्रम को स्वीकार किया गया तो गठबंधन का समर्थन करेंगी। भाजपा किसी बड़े दल के साथ गठबंधन में नहीं है, इसलिए गफलत नहीं है, लेकिन निर्णय लेना और उसे लागू करना वहाँ भी जटिल बना हुआ है। जम्मू-कश्मीर में १० वर्ष बाद होने जा रहे विस चुनावों के लिए भाजपा को अपने प्रत्याशियों की सूची जारी कर उसे जिस तरह वापस लेना पड़ा, उससे उसकी छिछालेदारी तो हुई ही है, अनुशासित दल की उसकी छवि को धक्का भी लगा। यदि भाजपा औरों से अलग है तो प्रत्याशी चयन की अपनी प्रक्रिया को लोकतांत्रिक आकार देना ही होगा। लगता है भाजपा को अभी भी लोकसभा चुनावों में हुई गलतियों का आभास नहीं है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के लिए जारी प्रत्याशियों की सूची का विरोध यह भी बताता है कि भाजपा प्रत्याशी चयन की कोई नीर-क्षीर, पारदर्शी और ऐसी प्रक्रिया का निर्माण नहीं कर सकी है, जिससे असंतोष, विरोध और भीतरघात का सामना न करना पड़े। वैसे यह समस्या केवल भाजपा की ही नहीं, सभी की है। कम से कम यह तो होना ही चाहिए कि राजनीतिक दल प्रत्याशियों के चयन में अपने जमीनी कार्यकर्ताओं की राय को महत्व दें। यह कठिन कार्य नहीं, लेकिन हमारे राजनीतिक दल आंतरिक लोकतंत्र विकसित करने से बच रहे हैं।
चुनाव अभियान प्रारम्भ हो रहा है, तो सब दल अपने-अपने ‘घोषणा-पत्र’ को ही गीता का सार व नीम की पत्ती बताकर सब समस्याएं मिटा देने तथा सबकी दवा बन जाने की नैतिकता की बातें करते हुए व्यवहार में अनैतिकता को छिपाएंगे। टुकड़े-टुकड़े बिखरे कुछ दल फेविकॉल लगाकर एक होंगे। सत्ता तक पहुँचने के लिए कुछ दल परिवर्तन को आकर्षण व आवश्यकता बताएंगे। इस बार दलों में जितना अन्दर-बाहर होता हुआ दिख रहा है, उससे स्पष्ट है कि चुनाव परिणामों के बाद भी एक बड़ा दौर असमंजस का चलेगा। ऐसी स्थिति में मतदाता अगर बिना विवेक के मत देगा तो परिणाम उस उक्ति को चरितार्थ करेगा कि “अगर अंधा अंधे को नेतृत्व देगा तो दोनों खाई में गिरेंगे।” इसलिए, प्रांत के लोगों को विवेक का परिचय देना होगा।
इन चुनावों की जटिलता का अंदाजा इससे भी लगता है कि २०१४ में हुए विधानसभा चुनाव के समय अनुच्छेद-३७० के तहत विशेष दर्जे से सज्जित जम्मू-कश्मीर अब विशेष राज्य के दर्जे से भी वंचित है। उस चुनाव में २ सबसे बड़ी और मिलकर सरकार बनाने वाली पार्टियां पीडीपी और भाजपा एक-दूसरे की धुर विरोधी हो चुकी हैं। राज्य में अब भाजपा प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हिन्दू बहुल सीटों और कश्मीरी पंडितों के मत बैंक को अपने खाते में डालने के इरादे से मैदान में है और ऐसे में कांग्रेस की हालत खराब होना तय माना जा रहा है। भाजपा की मजबूत स्थिति को देखते हुए भविष्य में क्षेत्रीय दलों के भाजपा के साथ बहती हवा में जाने की संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। जम्मू-कश्मीर एक राज्य के रूप में शुरू से विशिष्ट रहा है, इसलिए निश्चित ही चुनाव से उम्मीद जगी है कि जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक विकास और शांति-समृद्धि-स्थिरता का नया दौर शुरू होगा। ऐसा होना ही इन चुनावों की सार्थकता है, क्योंकि यह राज्य के उद्योग, पर्यटन, रोजगार, व्यापार, रक्षा, शांति आदि नीतियों तथा राज्य की पूरी जीवन-शैली व भाईचारे की संस्कृति को प्रभावित करेगा।
ये चुनाव ऐसे मौके पर हो रहे हैं, जब राज्य लम्बे दौर की विभिन्न चुनौतियों से जूझने के बाद शांति एवं विकास की राह पर अग्रसर है।