हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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“पहाड़ों में प्राकृतिक सौंदर्य तो होता ही होता है, पर साथ-साथ वैचारिक सौंदर्य की भी कमी नहीं होती है। लोगों में जहाँ मानवीय संवेदना जिंदा है, वहीं नारी के प्रति भी एक उत्तम भावबोध बना रहता है।” यह माघू काका का कहना था।
शायद उस दौर में पहाड़ों में महिलाओं की कमी रही हो। एक औरत २-३ घर तो अमूमन बस ही लिया करती थी। ऐसा नहीं, कोई तलाक होता था। बस, आज एक से शादी होती थी और कुछ दिनों बाद यदि उस शादीशुदा का जी मचला तो वह किसी और के साथ रातों-रात भाग कर चली जाती थी। वहाँ भी उसकी जवानी यदि शेष रह गई हो तो वह तीसरा घर भी इसी तरह बसा लिया करती थी। यह सिलसिला ४-५ घरों तक चलता रहता था। २-३ घरों में वह अपने बच्चों को भी जन्म दे जाती थी। इस पूरे प्रकरण में पिसता कोई था, तो वह मर्द। औरत स्वतंत्र थी। इस जद्दोजहद में कई बार पुरुष यदि भागती बार पकड़े गए तो आपस में लड़-भिड़ के एक- दूसरे की जान तक ले लेते थे, पर स्त्री को आँच नहीं आने देते थे। कोर्ट-कचहरियाँ और यहाँ तक कि पहले घर वालों को रीत (मुआवजा) भी चुकानी पड़ती थी, पर महिला को हर घर में उचित मान-सम्मान मिलता था।
ऐसी परिपाटी में धार के मेले से चेतराम भी रेसमू को भगा लाया था। रात के अंधेरे में रेसमू के दूसरे घर के पति ने अपने चचेरे भाइयों के साथ बहुत पीछा किया, परंतु वह रेसमू को छुड़ा न सका। चेतराम उसे भगाने में कामयाब हो गया। यह रेसमू का तीसरा घर था। दूसरे घर में उसने एक बेटी को जन्म दिया था। ४ साल की उसे वहीं छोड़ आई थी। यहाँ तीसरे घर में उसने २ बेटे व १ बेटी और जने थे। १ बेटा चेतराम की पहली पत्नी से था, जो भाग गई थी।
चेतराम की माँ और रेसमू की ज़िंदगीभर नहीं बनी। रेसमू चाहती है कि चेतराम अपनी माँ के साथ झगड़ा करे और उससे घर के काम कराए। इधर, माँ भी ठीक ऐसा ही रेसमू के प्रति चाहती है। दोनों चेतराम के कान कचोटती रहती है। कई बार तो सास-बहू के इस झगड़े में बेचारा चेतु काम से थका-हारा आकर शाम की रोटियाँ तक खुद बनाता था। इसी क्रम में एक दिन चेतू जिंदगी से दुखी हो कर जहर खा कर मर जाता है और पीछे अपनी औलाद को अनाथ छोड़ जाता है।
ये सब नब्बे के दशक की बातें हैं। आज का समाज बदल गया है। अब गाँव, देहात और पहाड़ों में भी शहरी सभ्यता के लक्षण आने लगे हैं। अब यह भागम-भाग तो नहीं रही, पर सास-बहू की खींच-तान आज भी शेष है।