Total Views :170

You are currently viewing जंगल नाम दूं…?

जंगल नाम दूं…?

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ 
उदयपुर(राजस्थान)

***************************************

फैल रहे हैं ये शहर,देख-देख कर मैं हैरान हूँ,
हर तरफ है भीड़,पर लगता खुद को वीरान हूँ
बसे जा रहे हैं ये शहर,इनको ही मैं जंगल कहूँ,
या उजड़ गए जो इन्हें बसाने,उसे जंगल नाम दूं।

घने हरे-भरे विशाल जंगल,बने एक कहानी अब,
रो रहे हैं ये जमीं-ये आसमां,दांस्ता सुनानी अब
लूट के हरियाली,इन बसे शहरों को जंगल कहूँ,
या लुट गई है जीवन धरा,उसे जंगल नाम दूं।

वो जंगल के अदभुत नज़ारे,खा गया है इन्सान,
प्रकृति के प्राण छीन लिए,अब हो रहा बेजान।
प्रकृति असंतुलन विपदा नज़ारों को जंगल कहूँ,
या जो संतुलन था हर जगह,उसे जंगल नाम दूं…??

परिचय–संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।

Leave a Reply