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दोस्त नाम विश्वास का

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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मित्रता और जीवन…

दोस्त नाम विश्वास परस्पर,
त्याग समर्पण नेह समझ लो
मजबूती जीवन कड़ी मैत्री,
रक्षक विपदा गेह समझ लो।

       समस्याओं से भरी राह में,
       संजीवन है मित्र समझ लो
       यारी केवल है व्यसन नहीं,
       सच्चे भाव पवित्र समझ लो।

तन मन धन अर्पण सदा मित्र,
नहीं द्यूत संग्राम समझ लो
रिश्ते-नाते सब वृथा जगत,
पा सुमीत अभिराम समझ लो।

   जाने मीत हृदय प्रीत सखा,
    गुप्त सकल मन बात समझ लो
    धर्म-जाति सबसे अलग सहज, 
    दोस्त सुखद सौगात समझ लो।

दोस्त सदा हो पावन मधुरिम,
रिश्तों में सरताज समझ लो
गज़ब समर्पण मीत मीत पर,
दुर्योधन अंगराज समझो।

    श्रेष्ठ जटायु सखा दशरथ सम,
    श्रीराम सखा सुग्रीव समझ लो
    मीत विभीषण भील महातम,
    पार्थ कृष्ण संजीव समझ लो।

तजे स्वार्थ परमार्थ मीत नित,
दे सुख-दु:ख में साथ समझ लो
करे प्रशंसा सभा बीच में,
विपद बढ़ाए हाथ समझ लो।

     दोस्त बने सम्बल जीवन में,
     बने सारथी धर्म समझ लो
     माँ ममता सम ढाल बने वह,
     प्रेरक नित सत्कर्म समझ लो।

शीतल मधुर सम्बन्ध मीत में,
अन्तर्मन सद्भाव समझ लो
मेरुदण्ड है काया जीवन,
दोस्ती औषधि घाव समझ लो।

      दुर्लभ ऐसा दोस्त मिले जग,
      पावन हृदय उदार समझ लो
      लोभ कपट बस झूठ लिप्त अब,
      मीत कहाँ संसार समझ लो।

सदाचार से विरत आज जन,
धोखा दे जग मीत समझ लो
प्रीति नीति से करे वंचना,
समझे जीवन जीत समझ लो।

       साथी जीवन सुधा अमर रस, 
       क्षमावान हित साथ समझ लो
       मधुरिम हिय संगीत दोस्त नित,
       दृढ़तर सुख-दु:ख हाथ समझ लो।

गहन मित्रता प्रीत रसिक मन,
तन मन अर्पण प्राण समझ लो
सुख-दु:ख का साथी अति दृढ़तम,
करे मीत कल्याण समझ लो।

       दोस्त 'निकुंज' जीवन सुलभ  कहॅं,
       मीत मिले नवनीत समझ लो।
       कृष्ण-सुदामा नि:स्वार्थ सखा,
       अनुपम मधुरिम प्रीत समझ लो॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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