अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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खो जाना भी कभी-कभी बेहतर होता है,
कम से कम पता तो लगे कि, कौन-कौन रोता है ?
जिनके लिए ज़माने में फरिश्ता था मैं,
गुम हुआ तो समझा, कि अब फरिश्ता नहीं होता है।
घर से निकलते ही दिख गई दुनियादारी,
कैसे कोई उम्रभर खुली सड़क पर सोता है।
गर्दिश में भी जीने का मज़ा दिया सबको,
गम मुझे मिला तो पाया दोस्त भी जुदा होता है।
जो थे मेरे पहलू के साए और आइना,
परेशां हो इंसान तो साया भी बुरा होता है॥