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स्वयं की खोज

संजय एम. वासनिक
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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फूलों की खुशबू हवा के
विपरीत फैलती नहीं,
चाहे चंदन, चाहे तगारा हो
या चमेली या गुलाब हो,
इनकी खुशबू अपने स्वभाव के विपरीत फैलती नहीं,
परन्तु, अच्छे लोगों की सुगंध
हवा के विपरीत फैलती है:
अच्छे व्यक्ति की सुगंध,
सभी क्षेत्रों में व्याप्त होती है।

जब मन से काम करने का
इरादा होता है,
तो अपने-आप ही
दयालुता का भाव,
जागृत हो जाता है
मैत्री की भावना भी,
खुद-ब-खुद बन जाती है
इरादे भी बन जाते हैं।

फिर विशिष्ट ध्यान या,
दृश्य के रूप में हमें
सोचना पसंद आता है,
हम महसूस करते हैं
प्रेम के, कृपा के रवैए को,
मूल पद्धति के रूप में
स्थापित करने के लिए,
यही तो शायद मैत्री भाव है
एक मौलिक स्वीकृति है।

एक संपूर्ण हृदयतल से,
स्वीकारोक्ति और मान्यता
मन में दर्द या अफसोस की,
भावना या किसी प्रियजन के
खोने पर दुःख की भावना होती है।

ऐसे विभिन्न प्रकार के,
दर्दनाक अनुभव होते हैं
जो मनोवैज्ञानिक रुप से,
या शारीरिक रूप से हो सकते हैं
बस यह पहचानने में जो सक्षम है,
वही दुःख का दृष्टिकोण जान जाता है।

इस समय ब्रह्मांड भी, अव्यवस्थित है
जब हम उस दृष्टिकोण को छोड़ देते हैं,
तो हम मैत्री दृष्टिकोण स्थापित करते हैं
हम अपने हृदय को,
मन को, तन को
धर्म के अनुरूप लाते हैं।

यदि हम इसी तरह से काम करते हैं,
तो उसके आधार के रूप में
हमारे पास स्वीकार्यता का
रवैया आ जाता है,
तो यही एकाग्रता है
और अंतर्दृष्टि के लिए एक,
मजबूत आधार बन जाता है।
शायद यही स्वयं की,
खोज का एक ज़रिया है॥