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दोस्त परमानेंट जरूरी

जी.एल. जैन
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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होती दोस्त की दोस्ती सही,
बीमारी दूर भागती है सभी
मिलता है जब दोस्त लगता है,
साँस मिली खुली हवा में जैसी
मज़ाक भी लगती है दोस्त की,
दीवाली की फुलझड़ी जैसी।

बचपन-जवानी-बुढ़ापा कटे एक जैसी
आहट लेता ‘मिस काल’ से ज़िन्दा- मरने की
करता है समाधान समस्या हो कैसी भी,
है दोस्ती ज़िंदगी में इत्र की खुशबू सी।
मज़ाक भी लगती है दोस्त की,
दीवाली की फुलझड़ी जैसी…।

छोटा-ना-बड़ा, अमीरी-गरीबी कैसी ?
नहीं आती आड़े रुपईया की गड्डी
इंसानियत का आइना सूरत तेरी,
जान लगा देता है मुश्किल हो कैसी।
मज़ाक भी लगती है दोस्त की,
दीवाली की फुलझड़ी जैसी…।

दोस्त-नदी-पहाड़-जानवर-पशु- पक्षी भी,
दिल से दिल का रिश्ता पक्की दोस्ती
दोस्त निर्मल-निःस्वार्थ होना है जरूरी
दोस्त पीपरमेंट ना हो, परमानेन्ट है जरूरी।
मज़ाक भी लगती है दोस्त की,
दीवाली की फुलझड़ी जैसी…।

दोस्ती पानी में नाव-सी,
दोस्ती धूप में छाँव-सी
दोस्ती गम में खुशी-सी,
ठंडी चाय लगे दोस्त की गरम-सी।
मज़ाक भी लगती है दोस्त की,
दीवाली की फुलझड़ी जैसी…॥