सुरेन्द्र सिंह राजपूत हमसफ़र
देवास (मध्यप्रदेश)
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नशा निरोध की आवश्यकता बहुत ही समाज उपयोगी है। हमारे बुज़ुर्ग कहा करते हैं कि “नशा नाश की जड़ है” बात बिल्कुल सच्ची है। कोई भी व्यक्ति शुरू में शौक के तौर पर नशे का सेवन करता है, फिर वह धीरे-धीरे बढ़कर आदत बन जाता है। जब वह आदत बना कि आदमी उसके बग़ैर जी नहीं पाता, कहीं से भी, कैसे भी उसे अपनी नशापूर्ति करना पड़ती है। उसके बिना वह बैचेन हो उठता है। वैध-अवैध किसी भी तरीके से धन अर्जन कर अपने नशे की पूर्ति करता है। सबसे पहले यह बात कि ‘आदमी नशा क्यों करता है ? और नशे को रोकने की आवश्यकता क्यों है ?’
नशा कई प्रकार का होता है, जैसे- शराब, सिगरेट, गांजा, भाँग, बीड़ी, तम्बाकू, ड्रग्स, कोकीन,चरस, अफ़ीम आदि। हम सब ये बात अच्छी तरह जानते हैं कि कोई-सा भी नशा मनुष्य के लिए लाभदायक नहीं होता। मनुष्य केवल मौज-मस्ती, आनन्द के लिए या किसी मनोवैज्ञानिक दवाब के कारण इनका सेवन करता है, जबकि हर नशे के पैकेट पर एक वैधानिक चेतावनी लिखी होती है-
“शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।”,
“सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है”, साथ ही एक ख़तरे का निशान भी उस पर चिन्हित रहता है। फिर भी आदमी नहीं मानता। इस शासकीय वैधानिक चेतावनी को नज़रन्दाज़ करके नशा करता है।
नशा केवल थोड़ी देर के लिए मनुष्य को उसकी वास्तविक स्थिति से अलग हटाकर क्षणिक आनन्द की अनुभति देता है। बस इस क्षणिक आनन्द के वशीभूत आदमी शौक़ के तौर पर नशा करता है। हाँ, कुछ लोग तनाव दूर करने के तो कुछ लोग थकान दूर करने के मनोवैज्ञानिक असर में इसका सेवन करते हैं। वे शुरु में भले ही इसे आनन्द और शौक़ के तौर पर शुरू करते हैं, लेकिन बाद में ये आदत में परिवर्तित हो जाता है, और फिर जो इसके दुष्परिणाम आते हैं,-स्वास्थ्य की हानि, धन का अपव्यय, लड़ाई-झगड़ा, गाली-गलौज़, मारपीट- पुलिस प्रकरण, अदालतबाज़ी, गृह कलह-अशान्ति, नशे की पूर्ति हेतु ज़मीन-ज़ायदाद-मकान, जेवर आदि बेचना, नशा करने वाले व्यक्ति को कोई सम्मान की दृष्टि से नहीं देखता आदि।
दोस्तों, हमने हमारे इर्द-गिर्द और समाज में ऐसे अनेक लोग देखे हैं जो किसी न किसी नशे के कारण बर्बाद हो गए। एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं देखा, जिसे कोई फ़ायदा हुआ हो। जब हम जानते हैं कि नशा इतनी ख़राब चीज़ है तो हम उसके चंगुल में क्यों फँसते हैं ? आजकल तो शाला-महाविद्यालय में पढ़ने वाले हमारे युवा साथी व लड़कियां तक इन नशे की आदतों के शिकार हैं। नशा करना एक फ़ैशन समझा जाने लगा है। इसका अमीरी-ग़रीबी, शिक्षित-अशिक्षित, महिला-पुरुष, बूढ़ा-युवा, उम्र आदि से भी कोई लेना-देना नहीं है। जो इसकी तरफ आकर्षित होता है, वह फंस जाता है।
दोस्तों, जब हमारे देश की नौजवान पीढ़ी, मज़दूर, किसान, व्यापारी, कर्मचारी, अधिकारी लोग नशे में डूबने लगेंगे तो परिवार, समाज और देश कैसे तरक़्क़ी करेगा…? इसलिए नशे को रोकने के उपाय बहुत ज़रूरी हैं। शासन को नशे की वस्तुओं पर ज़्यादा आय होती है, इसलिए हमारे देश में नशा निरोधक ठोस कानून नहीं बनाए जाते हैं।
आज के दौर में नशा निरोधक उपाय बहुत आवश्यक हैं-
-शासन की ओर से इसकी बिक्री बन्द कर नशा निरोधक सख़्त क़ानून बनाए जाएं, तो धीरे-धीरे समाज को नशामुक्त बनाया जा सकता है।
-देश में नशीली वस्तुओं के विक्रय पर सख़्त रोक लगाई जाए।
-शिक्षा प्रणाली में व्यवहारिक ज्ञान देकर नशे की बुराईयों से समाज को जागृत किया जाए।
-शिक्षकगण, माता-पिता, अभिभावक बच्चों को अच्छे संस्कार दें, उन्हें नशे की बुराइयों से सम्बंधित शिक्षा व संस्कार दें।
-समाज-सुधारक, साहित्यकार, पत्रकार, फिल्मकार, कलाकार लोग अपने स्तर से समाज को नशे की बुराइयों से अवगत कराते हुए जनजागृति लाने का प्रयास करें। हम सब ये कसम खाएं, आओ नशामुक्त भारत बनाएं।
परिचय-सुरेन्द्र सिंह राजपूत का साहित्यिक उपनाम ‘हमसफ़र’ है। २६ सितम्बर १९६४ को सीहोर (मध्यप्रदेश) में आपका जन्म हुआ है। वर्तमान में मक्सी रोड देवास (मध्यप्रदेश) स्थित आवास नगर में स्थाई रूप से बसे हुए हैं। भाषा ज्ञान हिन्दी का रखते हैं। मध्यप्रदेश के वासी श्री राजपूत की शिक्षा-बी.कॉम. एवं तकनीकी शिक्षा(आई.टी.आई.) है।कार्यक्षेत्र-शासकीय नौकरी (उज्जैन) है। सामाजिक गतिविधि में देवास में कुछ संस्थाओं में पद का निर्वहन कर रहे हैं। आप राष्ट्र चिन्तन एवं देशहित में काव्य लेखन सहित महाविद्यालय में विद्यार्थियों को सद्कार्यों के लिए प्रेरित-उत्साहित करते हैं। लेखन विधा-व्यंग्य,गीत,लेख,मुक्तक तथा लघुकथा है। १० साझा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है तो अनेक रचनाओं का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में भी जारी है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अनेक साहित्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। इसमें मुख्य-डॉ.कविता किरण सम्मान-२०१६, ‘आगमन’ सम्मान-२०१५,स्वतंत्र सम्मान-२०१७ और साहित्य सृजन सम्मान-२०१८( नेपाल)हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्य लेखन से प्राप्त अनेक सम्मान,आकाशवाणी इन्दौर पर रचना पाठ व न्यूज़ चैनल पर प्रसारित ‘कवि दरबार’ में प्रस्तुति है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और राष्ट्र की प्रगति यानि ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त,सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ एवं कवि गोपालदास ‘नीरज’ हैं। प्रेरणा पुंज-सर्वप्रथम माँ वीणा वादिनी की कृपा और डॉ.कविता किरण,शशिकान्त यादव सहित अनेक क़लमकार हैं। विशेषज्ञता-सरल,सहज राष्ट्र के लिए समर्पित और अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिये जुनूनी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
“माँ और मातृभूमि स्वर्ग से बढ़कर होती है,हमें अपनी मातृभाषा हिन्दी और मातृभूमि भारत के लिए तन-मन-धन से सपर्पित रहना चाहिए।”