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पते की बात कही मुख्य न्यायाधीश और गृह मंत्री ने

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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आज देश के किसी न्यायाधीश या नेता की हिम्मत नहीं पड़ती कि भाषा के सवाल पर वे इतनी पुख्ता और तर्कसंगत बात कह दें। मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ ने संगोष्ठी में बोलते हुए कह दिया कि कोई यदि अच्छी अंग्रेजी बोल सकता है तो इसे उसकी योग्यता का प्रमाण नहीं माना जा सकता और उसकी योग्यता इस बात से भी नापी नहीं जा सकती कि वह व्यक्ति कौन से नामी-गिरामी विद्यालय या महाविद्यालय से पढ़कर निकला है। हमारे देश में इसका एकदम उल्टा ही होता है। इसका एकमात्र कारण हमारे नेताओं और नौकरशाहों की बौद्धिक गुलामी है। अंग्रेजों की लादी हुई औपनिवेशिक व्यवस्था ने भारत की शिक्षा और चिकित्सा दोनों को चौपट कर रखा है। महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी और डाॅ. रामनोहर लोहिया ने इस राष्ट्रीय कलंक के विरुद्ध क्या-क्या नहीं कहा था ? इस औपनिवेशिक और पूंजीवादी मनोवृत्ति के खिलाफ हमारे वामपंथियों ने भी जब-तब बोला और लिखा है लेकिन अब देश के सर्वोच्च न्यायाधीश यह बात बोल रहे हैं तो वे सिर्फ बोलते ही न रह जाएं। इस दिशा में कुछ करके भी दिखाएं। भारत की सभी अदालतों में भारतीय भाषाओं में फैसले और बहस भी हों, ऐसी घोषणा वे क्यों नहीं करते ? वे संसद को सारे कानून हिंदी में बनाने के लिए बाध्य या प्रेरित क्यों नहीं करते ? गृहमंत्री अमित शाह ने इस प्रक्रिया का रास्ता दिखा दिया है। उन्होंने तमिलनाडु सरकार से कहा है कि वह अपने विद्यालय-महाविद्यालयों की पढ़ाई तमिल माध्यम से क्यों नहीं करवाती ? लगभग ३० साल पहले उ.प्र. के मुख्यमंत्री मुलायमसिंह और मैं चेन्नई में मुख्यमंत्री करूणानिधि से मिलने गए थे तो उनका पहला सवाल यही था कि ‘आप दोनों यहां क्या हम पर हिंदी थोपने के लिए आए हैं ?’ तो हमारा जवाब था, ‘हम आप पर तमिल थोपने आए हैं।’ यही बात अब अमित शाह ने बेहतर और रचनात्मक तरीके से कह दी है। दक्षिण भारत के नेता ‘हिंदी लाओ’ और ‘अंग्रेजी हटाओ’ का विरोध तो कर सकते हैं लेकिन ‘तमिल पढ़ाओ’ का विरोध किस मुँह से करेंगे ? यदि करेंगे तो उनके मत-बैंक में चूना लग जाएगा। मत और मुद्रा तो नेताओं की प्राण-वायु है। उसके बिना उनका दम घुटने लगता है। धनंजय चंद्रचूड़ और अमित शाह ने उनकी प्राणवायु को स्वच्छ बना दिया है।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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