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पैग़ाम-ऐ- मोहब्बत

डॉ. संजीदा खानम ‘शाहीन’
जोधपुर (राजस्थान)
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मेरा पैग़ाम मुहब्बत है जहां तक पहुंचे,
आरज़ू है कि वो सबके मकां तक पहुंचे।

एक खुशबू की तरह फैले अमन की बातें,
बात ऐसी हो दुआ बनके यहाँ तक पहुंचे।

जहां नफ़रत का अंधेरा हो उसे दूर करे,
रौशनी ऐसी दिखाएं जो वहाँ तक पहुंचे।

दूर दुनिया में जहां जुल्म और दहशत है,
सिलसिला ऐसा हो कि अम्न वहाँ तक पहुंचे।

मेरी ग़ज़लों में इक आह बसी है ‘शाहीन’,
एक आवाज है जालिम की जुबां तक पहुंचे॥