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बस लिखना है…

हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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मैं कवि हूँ,कविताएं लिखता हूँ,सुनाता हूँ,
मेरी लेखनी बेबाक,कुछन कुछ कह जाएगी
लोगों की सम्पत्ति संजो कर भी ढह जाएगी,
मेरी लेखनी की ज़ुबान थाती बन कर रह जाएगी।

लोग लगे हैं सब धन दौलत ही बटोरने,
मैं भाव,कल्पना और शब्द बटोरता हूँ
लोग लगे हैं औलादों को विरासत छोड़ने,
मैं सदियों दर सदियों भाव छोड़ता हूँ।

बिकती है इस दुनिया में राख भी आज,
लकड़ियों के मुकम्मल जल जाने के बाद
पर विडम्बना देखिए इस दुनिया में जनाब,
बिकती नहीं तो सिर्फ कवियों की किताब।

मैं निराश नहीं हूँ खुद की बदहाली के ख्याल से,
मुझे समाज के भटक जाने का डर सता रहा है
है नहीं मेरा कोई खून का रिश्ता इस दुनिया से,
फिर भी मुझे इसकी चिन्ता का घुन खा रहा है।

है नहीं याद यहां अपनी चौथी पीढ़ी के पुरखे किसी को,
फिर भी आदमी भगवान के होने पर सवाल उठा रहा है
निकम्मी सोच की दाद देनी होगी,है याद नहीं पुरखे ही,
तो क्या फिर तुम्हारा खानदान हवाओं से ही आ रहा है।

यकीन मानिए साहब भूल जाएगी बाप को भी दुनिया,
गर जीने का और आगे बढ़ने का यही ही तरीका रहा
मैं रहूं या न रहूं इस दुनिया में,तब ऐ मेरे अजीज दोस्तों,
मेरी ओर से निशानी हर अल्फाज मेरा तुम्हें लिखा रहा।

सिर्फ बुद्धि-धन के बल पर ही इठलाना इतना,
ए जमाने! खुद ही बता कि जायज कितना है ?
हवा में उड़ने वाले हर परिंदे को भी तो आखिर में,
थक हार कर किसी न किसी शाख पर टिकना है।

पड़ता नहीं है कोई फर्क मुझे किसी के सुनने,
या न सुनने से,मुझे कौन-सा महान दिखना है ?
कवि हूँ मैं प्रत्यक्ष दृष्टा समाज की हर घटना का,
इसी लिहाज से ही तो मुझे सच बस लिखना है॥

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