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रिश्ते अद्भुत बन गए

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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बीते सुनहर चारुतम, तीस वर्ष मनमीत।
गाये जीवन गीत हम, साहचर्य नवनीत॥

रिश्ते अद्भुत बन गये, प्राणप्रिये तुझ संग।
यादों के बन गुलिस्ते, हर पल प्रीत उमंग॥

यायावर हम साथ में, सुख-दु:ख में हम यार।
तुम जीवन साथी सजन, मंगलमय सुखसार॥

मधुरिम पल आये विविध, फँसे विपद मँझदार।
गंगा सम शीतल सरल, आप बने पतवार॥

अपने सारे गमों को, पान किया हो शान्त।
खड़ी रही चट्टान बस, रिपु दल मैं आक्रान्त॥

रोग शोक परीताप में, रूह दृष्टि बन संग।
दे सुविचार स्मित अधर, निःसृत दे नवरंग॥

सही विपद संताप को, हिमवत बन नित धीर।
बनी नेह सहधर्मिणी, नीति रीति गंभीर॥

अति शिक्षित बिन मद प्रिये, शील त्याग गुण कर्म।
सम्मानित अपना परा, माँ पत्नी सह धर्म॥

आप रहें सारोग्य नित, खिलें सदा मकरन्द।
सुख वैभव सौभाग्यमय, आनंदित नवरंग॥

हूँ कृतज्ञ पतिरूप में, हमदम बन दी साथ।
ममता करुणा सारथी, जीवन पथ दे हाथ॥

हो निशि, पर तुम चन्द्रिका, दी जीवन आभास।
मैं साधक तुम साधिका, गृह निकुंज हम खास॥

कीर्ति कुसुम फैले गगन, जीवन हो नवनीत।
साथ मिलें हमदम प्रिये, गाएँ मधुरम गीत॥

यायावर हम साथ में, गढ़ सत्पथ नवप्रीत।
रस तरंग जीवन सरित, माँझी बन संगीत॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥