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वात्सल्य से भरा पिटारा

 डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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माँ अनमोल रिश्ता (मातृ दिवस विशेष) …

सृजन का यह ढंग निराला,
ममता, वात्सल्य से भरा पिटारा
दे ना सका कोई, इसका मोल,
माँ का रिश्ता बड़ा अनमोल।

जननी बनी वो, सौ कष्ट उठाए,
मौत के मुख से बाहर आए
मातृत्व-सुख को पाकर वो,
खुशी से माँ फूली ना समाए।

ले गोद में, हर दु:ख वो भूली,
रंगीन ख्वाबों में झूली
खुशी का ना रहा ठिकाना,
मिल गया हो कोई खजाना।

अमृत, उर-पय उसे पिलाए,
सींचती रही, छाती से लगाए
चार पहर उसे, चिंता सताए,
उसको कोई आँच ना आए।

संस्कार की सीख है देती,
और देती रहती है दुआएँ
सीने में कितने दर्द छुपाए,
हर लेती है, उसकी बलाएँ।

अपना वह, वात्सल्य लुटाती,
देख संतति की छवि वो प्यारी
उसकी आँखों में मानो,
सिमट गई है दुनिया सारी।

एक मंजर वो भी है दिखता,
लगता है जो बड़ा सुहाना
अपने बच्चों की खातिर जो,
चिड़िया भी चुगती है दाना।

प्रकृति का ये खेल निराला,
लगता है कितना ही प्यारा।
ये दिखलाता, रिश्ते का मोल,
माँ का रिश्ता बड़ा अनमोल।

सच पूछो तो, माँ जीवन में,
ईश्वर का है,एक वरदान।
ना इसका है कोई मोल,
ना है कोई इसके समान॥

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