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श्री गणेश तत्व और महोत्सव

सारिका त्रिपाठी
लखनऊ(उत्तरप्रदेश)
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भगवान गणेश का प्राकट्य भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि को हुआ था-
“नभस्ये मासि शुक्लायाम् चतुर्थ्याम् मम जन्मनि।
दूर्वाभि: नामभिः पूजां तर्पणं विधिवत् चरेत्॥”
तब से लेकर आज तक उनका महोत्सव मनाया जा रहा है। भाद्र पद मास का वैदिक नाम नभस्य है।
प्राचीन काल में मिट्टी की मूर्ति बनाकर अनेक विधियों से भगवान गणेश की पूजा की जाती थी। आज भी उनकी विधिवत पूजा अनेक राज्यों में की जाती है। कोई तीन दिन,कोई एक सप्ताह तो कोई पूर्णिमा पर्यन्त इनकी मूर्ति की आराधना करता है। परब्रह्म परमात्मा का ही पृथ्वी पर प्रकटीकरण श्री गणेश के रूप में हुआ था। अतः श्रीगणेश अजन्में देवता हैं। महाशक्ति ब्रह्मरूपा गौरीदेवी द्वारा उनका प्रकटीकरण किया गया था। यही कारण है कि तृतीया तिथि की देवी गौरी और चतुर्थी तिथि के देव श्रीगणेश हैं।माता और पुत्र दोनों का सान्निध्य है।
ॐ ही श्री गणेश के रूप में प्रकट हुआ।गणेश जी की आकृति ॐ जैसी दिखती है। श्री गणेशपुराण में इस तथ्य का प्रतिपादन प्रमाण अनेक स्थलों पर मिलता है। इन अनेक प्रमाणों और आद्य पूज्य होने के कारण गणनायक का पंचदेव में स्थान होने से इनका महत्व शिव,दुर्गा,सूर्य,विष्णु के तुल्य है। महर्षि वेदव्यास जी से पूजित होने के कारण श्रीगणेश की महत्ता विष्णुरूपी श्रीकृष्ण के तुल्य स्वतः सिद्ध है। इन पांच देवों में अभेद बुद्धि रखने वाला ही तत्व ज्ञानी होता है।
श्रीगणेश जी को दूर्वा बहुत प्रिय है। उसमें भी २१ नरकों से बचाव के लिए २१ दूर्वा को उनको चढ़ाकर व्यक्ति अपने को कष्ट से बचा लेता है। दूर्वा श्याम और सफेद दोनों होती है। दूर्वा नरकनाशक,वंशवर्धक,आयुवर्धक, तेजवर्धक होती है।
“हरिता श्वेतवर्ना वा पंच-त्रिपत्र संयुता:।
दूर्वांकुरा मया दत्ता एकविंशतिः सम्मिताः।”
महर्षि कौण्डिन्य और उनकी पत्नी आश्रया ने दूर्वा से भगवान गणेश की पूजाकर उनका दर्शन प्राप्त किया था।
शमी और मंदार के पुष्प भी गणेश जी को प्रिय हैं।
एक बार अपने सौंदर्य पर गर्वित हो चन्द्रमा ने लंबोदर गणेश का मजाक उड़ाया था। क्रुद्ध गणेशजी ने चन्द्रमा को श्राप दिया-“मेरी तिथि को तुम्हारा अदर्शन हो जाएगा।” जब चन्द्रमा ने प्रार्थना की कि-“हे वरद!मुझे क्षमा करें।” तब गणेश जी ने उन्हें कहा-“जाईये,अदर्शन तो नहीं होगा पर अपवाद होगा। जो भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को तुम्हारा दर्शन करेगा,वह कलंक का भागी बनेगा।” अतःआज का चन्द्रमा निषिद्ध दर्शन होता है। दूसरों से कड़वे और अपशब्द वचन सुनकर व्यक्ति कलंक से मुक्त हो पाता है।
शाक्तागम,शैवागम,गणपत्यागम का विद्या और साधना वैभव अपूर्व है। इससे पार पाना असंभव जैसा है।
स्कन्द पुराण में भगवान शिव ने कहा है-“मेरे आगम(तंत्र शास्त्र) की ही तरह गणपति के आगम का भी बाहुल्य है-आगमा बहवो जाता गणेशस्य यथा मम।”
श्री गणेश से संबंधित अनेक रहस्यों पर विस्तृत चर्चा बाद में,पहले उनके पूजन विधान पर दृष्टि डालते हैं।श्री गणेश के अनेक मन्त्र और स्वरूप हैं पर छोटा मन्त्र-‘ॐ गं गणपतये नमः’ सर्वप्रसिद्ध है।
श्री गणेश जी की आराधना को ऐसे क्रम में अपनाना चाहिए-षोडशोपचार से पूजन, गणेशस्तवराज का पाठ, गणेश कवच का पाठ,गणेश उपनिषद (अथर्वशीर्ष) का पाठ,गणेश शतनाम का पाठ और अंत में श्रीगणेश सहस्रनाम का पाठ करें। उपचार पूजा करते समय ही श्री गणेश यन्त्र का भी विधिपूर्वक पूजन किया जाता है।
जब मूर्ति पूजा का विशाल स्वरूप होता है,तब सिद्धि-बुद्धि की भी पूजा की जाती है। तंत्र में भगवान गणेश के अनेक गुप्त स्तोत्र हैं,जो अलग-अलग कार्य के लिए सिद्धि दायक माने गए हैं।

#सूंड बायीं या दक्षिण ओर ?
भगवान श्रीगणेश की सूंड बायीं ओर मुड़ी होनी चाहिए,या दाहिनी ओर,यह विषय निरन्तर चर्चा में बना रहता है। लोग इस विषय को लेकर भ्रम में रहते हैं कि क्या सही है ? उत्तर भारत की श्रीगणेश मूर्तियों की सूंड दाईं ओर मुड़ी रहती हैं,जबकि दक्षिण भारत की मूर्ति में बायीं ओर मुड़ी होती है। दक्षिण भारत की परम्परा में प्रतिमा विज्ञान का नेतृत्व ‘मयमतम्’ ग्रन्थ करता है,वहीं से इस रहस्य का तांत्रिक भेदन होता है।बायीं ओर मुड़ी सूंड वाली प्रतिमा की पूजा से भोग का मार्ग प्रशस्त होता है।समस्त सांसारिक वैभव की प्राप्ति होती है। ‘मयमतम्’ में वहाँ की परम्परा स्पष्ट है-श्री गणेश का मुख हाथी का होता है, उसमें एक दांत बाहर निकला रहता है,तीन नेत्र होते हैं,लाल रंग होता है,चार भुजाएं होती हैं,विशाल उदर होता है, सर्प का जनेऊ कंधे से लटकता रहता है,जंघा और घुटना सघन और प्रबल होता है,बायां पैर फैला और दाहिना मुड़ा होता है,सूंड बायीं ओर मुड़ी होती है।
#वामावर्त्त
सभी प्रकार की आगमिक साधना में मोक्ष और लोक प्राप्ति की साधना का मार्ग अलग रहता है,चाहे वह श्रीचक्र का हो या गणेश वामावर्त्त का हो। दक्षिण की ओर मुड़ी सूंड की पूजा से व्यक्ति का पारमार्थिक लाभ होता है।अतः,उत्तर भारत में सात्विक लाभ के लिए दक्षिण सूंड वाले गणेश ही पूजे जाते हैं।

#क्यों हैं सिन्दूर वर्ण गणेशजी ?

जब भगवान शिव ने पार्वती की रक्षा में लगे गणेशजी का सिर काट कर उनका वध कर दिया,तब पुत्र शोक में मूर्छित पार्वती को आश्वस्त करते हुए भगवान भव ने हाथी का सिर उस धड़ से जोड़ कर गणेश जी को जीवित कर दिया। वह जुड़ा सिर सिंदूर से लेपित था। माता पार्वती अति स्नेहवश पुत्र गणेश को अपने हाथ में लगे सिंदूर से सहलाती थीं,तब वे सिंदूर वर्ण के लगते थे। हाथी का सिर भी वैसा ही निकल आया,तब माता पार्वती ने कहा-“तुम्हारे मुख पर सिंदूर दिख रहा है। अतः तुम अपने भक्तों से हमेशा सिंदूर से लेपित होते रहोगे-
“आनने तव सिन्दूरं दृश्यते साम्प्रतं यदि।
तस्मात्वंपूजनियो$सि सिन्दूरेण सदा नरै:॥”

#गणेश जी की अग्रपूज्यता ?
भगवान शिव ने गणेशजी को यह वरदान दिया था कि तुम सभी देवों में अग्र पूजित होओगे। साथ ही तुम सर्व पूज्य भी बने रहोगे(लिंगपुराण)।भगवती ललिता देवी ने भी गणेशजी को सर्व अग्रपूजित होने का वरदान दिया था(ब्रह्मांडपुराण)। यही कारण है कि गणेश जी आज शिव जी और माता ललिता जी से वरदान पाकर इन्द्र,कुबेर आदि द्वारा भी प्रथम पूजित हैं। श्री गणेश का प्रातः स्मरण मात्र से दिनभर निर्विघ्न बीतता है। विवाह से उपनयन तक में ‘गणानान्त्वा गणपति’ मन्त्र गूंजता रहता है।

#मूषक वाहन क्यों ?
भगवती पार्वती ने एक बार अतिस्नेह वश पुत्र गणेश को अमरत्व देने हेतु लड्डू में अमरत्व भर दिया। उसे गणेश जी ने खाया, पर एक चूहा भी उसे खा गया। वह अमर हो गया। तब भगवान गणेश ने उसे अपना वाहन बना लिया। अमर वाहन पर अमर गणेशजी सवार होकर चलते हैं।

#दो पत्नियाँ
भगवान ब्रह्मा ने श्री गणेश जी का विवाह अपनी दोनों पुत्रियों सिद्धि और बुद्धि(रिद्धि) से कर दिया। भगवान गणेश के दो पुत्र हैं शुभ और लाभ।
#गणेश गायत्री के अनेक मन्त्र
-ॐ तत् कराटाय विद्महे हस्तिमुखाय
धीमहि।तन्नोदन्ति: प्रचोदयात्।
-ॐ तत् पुरुषाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ति: प्रचोदयात्॥
-ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ति: प्रचोदयात्।
-ॐ लम्बोदराय विद्महे महोदराय धीमहि। तन्नो दन्ति:,प्रचोदयात्॥
-ॐ महोल्काय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ति: प्रचोदयात्॥
-ॐ महकर्णाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि।तन्नो दन्ति: प्रचोदयात्॥
-ॐ महागणपतये विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ति: प्रचोदयात्॥

#काशी के छप्पन विनायक
काशी में भगवान शिव ने गणपति को काशी की रक्षा के लिए अनेक आवरण में स्थापित किया। एक-एक आवरण में आठ-आठ विनायक होते थे। प्रथम आवरण अभक्तों को रोकने के लिए था जिसमें आठ विनायक थे-काश्यामष्टौ विनायका:-प्रथम आवरण-अर्क, दुर्ग,भीम,देहली,उद्दंड,पासपाणी,खर्व, सिद्ध…विनायक॥ द्वितीय आवरण में आठ भक्तरक्षा विनायक थे-लंबोदर,
कूटदन्त,शालकंट,कूष्माण्ड,मुंड,विकट,राजपुत्र,प्रणव…विनायक॥ तृतीय आवरण में क्षेत्र रक्षा विनायक आठ होते हैं-वक्रतुंड,एकदंत,त्रिमुख,पंचास्य,हेरम्ब, विघ्नराज,वरद,मोदक…विनायक॥ चतुर्थ आवरण में विघ्नराज विनायक आठ होते हैं-अभय, सिंहतुण्ड,कूणिताक्ष,क्षिप्रप्रसाद,
चिंतामणि,दंतस्त,पिचंडील,उद्दण्डमुण्ड ,बुद्विमुख,ज्येष्ठ,गज,काल,नागेश..विनायक॥ षष्ठ आवरण में यह आठ विनायक होते हैं-मणिकर्णिका,आशा,सृष्टि,यक्ष,गजकर्ण, चित्रर्घन्टा,मङ्गल,मित्र…विनायक॥ सप्तम आवरण में आठ विनायक हैं-मोद,प्रमोद, सुमुख,दुर्मुख,गणनाथ,ज्ञान,द्वार,अविमुक्त… विनायक॥ आज भी ये छप्पन विनायक काशी में हैं,जो पंचक्रोशी परिक्रमा के समय पूजे जाते हैं।

#तन्त्र शास्त्र में श्रीगणेश जी
श्री गणेश जी के अनेक चमत्कारी मन्त्र साधना में प्रयुक्त होते हैं,यह हैं-
ॐ वक्रतुण्डाय हुम्,ॐ गं गणपतये नमः,ॐ मेघोल्काय स्वाहा,उच्छिष्ट गणपति मन्त्र,ॐ नमः उच्छिष्ट गणेशाय हस्तपिशाचि लिखे स्वाहा।
इस तरह भगवान गणेश अपनी उपस्थिति से इस राष्ट्र का निरन्तर कल्याण करते रहे हैं,और करते रहें,यही प्रार्थना।

परिचय-सारिका त्रिपाठी का निवास उत्तर प्रदेश राज्य के नवाबी शहर लखनऊ में है। यही स्थाई निवास है। इनकी शिक्षा रसायन शास्त्र में स्नातक है। जन्मतिथि १९ नवम्बर और जन्म स्थान-धनबाद है। आपका कार्यक्षेत्र- रेडियो जॉकी का है। यह पटकथा लिखती हैं तो रेडियो जॉकी का दायित्व भी निभा रही हैं। सामाजिक गतिविधि के तहत आप झुग्गी बस्ती में बच्चों को पढ़ाती हैं। आपके लेखों का प्रकाशन अखबार में हुआ है। लेखनी का उद्देश्य- हिन्दी भाषा अच्छी लगना और भावनाओं को शब्दों का रूप देना अच्छा लगता है। कलम से सामाजिक बदलाव लाना भी आपकी कोशिश है। भाषा ज्ञान में हिन्दी,अंग्रेजी, बंगला और भोजपुरी है। सारिका जी की रुचि-संगीत एवं रचनाएँ लिखना है।