कुल पृष्ठ दर्शन : 217

You are currently viewing नौकरी

नौकरी

डोली शाह
हैलाकंदी (असम)
**************************************

राधा पढ़ाई में शुरू से ही सदा अव्वल रही, लेकिन पिता की आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने के कारण वह आगे की पढ़ाई जारी रखने में असमर्थ थी, पर राधा आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए कटिबद्ध थी। इसलिए विपरीत परिस्थिति में भी उसने बीए तक की पढ़ाई खुद ट्यूशन पढ़ाकर पूरी कर ली। उसी दौरान साथ पढ़ने वाले सहपाठी रमेश से उसकी दोस्ती हो गई। यह दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में बदल गई तो, दोनों परिवार की सहमति से विवाह बंधन में बंध गए। शादी के सालभर बाद ही भगवान की कृपा से एक संतान भी तोहफे के रूप राधा को मिल गई।
संतान की खुशी अपनों के बीच बांटने के लिए राधा ने अपने पति के साथ मिल कर एक पार्टी देने का निश्चय किया। उसी की तैयारी में वह दोनों बाजार से कुछ सामान लेने गए थे। सामान लेकर वापस लौट रहे कि अचानक राधा के पतिदेव चक्कर खाकर जमीन पर गिर गए। किसी तरह राधा उनको लेकर अस्पताल ले गई। अस्पताल में डॉक्टर ने पतिदेव की हालत निराशाजनक देख, जो हो सकता था, वो दवा दी, साथ ही कह दिया आप इनको अब घर ले जाएं, क्योंकि इनको दिल का गम्भीर दौरा पड़ा है। अब यह कुछ
ही पल के मेहमान हैं। आप घर ले जाकर इनकी सेवा कीजिए, और भगवान से प्रार्थना करें।
डॉक्टर की बात सुनकर राधा की आँखों के सामने अंधेरा छा गया। वह सोचने लगी कि, पति के न रहने पर उसका और उसके बच्चे का भविष्य क्या होगा ! यह राधा सोच ही रही थी कि, उसके पति ने अंतिम साँस ली और सबको बेसहारा छोड़कर दुनिया से चले गए।
आँखों के सामने यह सब देख राधा विचलित हो गई, उसे समझ नहीं आ रहा धा कि अब वह अकेले क्या करेगी !
राधा को परेशान देख पिता उसके सिर पर हाथ रख कर बोले,-“तुम इतनी पढ़ी-लिखी हो कुछ भी करके अपना जीवन-यापन कर सकती हो, इतनी चिंता ना करो बेटी।”
दु:ख की घड़ी में भी यह बात मेरे लिए आत्मविश्वास की एक नई चिंगारी जगा गई।

पति की मृत्यु के एक महीने बाद से ही राधा नौकरी के लिए आमंत्रण पत्र भरने लगी। उसका प्रयास सफल हुआ, ६ महीने के अंदर ही उसे अध्यापिका के पद पर नियुक्ति मिल गई, जिससे वह अपने बच्चे का भी जीवन- यापन भली-भांति करने में सफल हो गई। बेटी को आत्मनिर्भर देख उसके पिता उसके घर आकर पीठ थपथपाते हुए बोले बेटा- “आज तुमने मुझे गलत साबित कर दिया। हर पिता को भी कितनी भी मजबूरियों के बीच कम भोजन करके भी उन्हें बच्चों को उनकी पढ़ाई से कभी वंचित नहीं करना चाहिए।तुमने आज एक नई राह दिखाई कि लड़कियों को भी आत्मनिर्भर बनाने के लिए शिक्षा दिलाना उतना ही जरूरी है, जितनी एक लड़के को…।”

Leave a Reply