दिल्ली
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इंटरनेट मीडिया प्रभावक (इन्फ्लुएंसर) एवं यू-ट्यूबर रणवीर इलाहाबादिया ने माता-पिता की गरिमा को आहत करने वाली अश्लील, अपमानजनक एवं विवादास्पद टिप्पणी करते हुए भारतीय संस्कारों एवं संस्कृति को धुंधलाने का घिनौना एवं अक्षम्य अपराध किया है। भले ही इसके लिए माफी मांगी गई हो, लेकिन रणवीर ने हास्य कलाकार समय रैना के यूट्यूब रियलिटी शो में एक प्रतियोगी से उसके माता-पिता और यौन संबंधों को लेकर सवाल करते हुए जो आपत्तिजनक टिप्पणी की, इसको लेकर लोगों में गहरा आक्रोश है। हर जगह रणवीर की थू-थू हो रही है। हर कोई उनके खिलाफ आवाज उठा रहा है और जेल भेजने की मांग कर रहा है।
तथाकथित रणवीर इलाहाबादिया उन आभासी सामग्री सृजनकर्ताओं में से एक है, जो ऐसे अश्लील एवं संस्कृति-विरोधी प्रदर्शन से करोड़ों ₹ भी कमाते हैं। इन्हें पिछले साल एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से राष्ट्रीय सृजनकर्ता पुरस्कार मिला था। पाकिस्तान से भारत आए रणवीर इलाहाबादिया यानी रणवीर सिंह अरोड़ा जैसी विकृत सोच रखने वाले लोगों को ऐसे बड़े सम्मान मिलना भी अनेक प्रश्नों को खड़ा करता है, क्योंकि यह अभिव्यक्ति की आजादी का बेहूदा एवं अमर्यादित उपयोग है। यह रचनात्मकता नहीं है, यह विकृति है और ऐसे व्यवहार को सामान्य नहीं माना जा सकता। विडम्बना एवं दुर्भाग्यपूर्ण तो यह स्थिति भी है जिसमें इस खराब टिप्पणी को जिस तरह आम लोगों की जोरदार तालियाँ मिलीं। प्रश्न है कि आखिर हम कैसा समाज बना रहे हैं ? क्यों हम अपनी संस्कृति एवं संस्कारों को धूमिल कर रहे हैं।
स्मार्टफोन आने के बाद से सोशल मीडिया का प्रयोग लगातार बढ़ता ही जा रहा है। जैसे-जैसे इसका प्रयोग बढ़ रहा है, वैसे-वैसे नकारात्मक प्रभाव भी सामने आ रहे हैं, जो भारतीय समाज, संस्कृति और परिवार परम्परा पर सीधे आघात कर रहे हैं। भारत विरोधी तत्वों द्वारा सोशल मीडिया से समाज में भौतिक वासना, नग्नता व अश्लीलता की विकृति फैलाने का काम भी हो रहा है, जिसे रोकने के लिए सरकार से लेकर प्रशासन और समाज को साथ आकर कड़े कदम उठाने होंगे। एक ओर जहां सोशल मीडिया पर अनचाहे अश्लील दृश्यों की भरमार हो रही है, वहीं इस प्लेटफार्म से होने वाली कमाई एक बड़ी वजह निकल कर सामने आ रही है। सोशल मीडिया पर किसी भी सामान्य व्यक्ति द्वारा अपना ख़ाता बनाकर ऐसी भी सामग्री या तत्व (कंटेट) डाले जा सकते हैं, जिसे लेकर किसी प्रकार की कोई पाबंदी नहीं है। इस प्रकार समाज में पैसे का लोभ दिखाकर अश्लील लघु फिल्म और वेब सीरिज का गौरखधंधा धड़ल्ले से चल रहा है। मोबाइल एप्स और ओटीटी वेब पोर्टल पर अश्लील एवं संस्कृति विरोधी सामग्री निर्बाध रूप से होना सरकार की बड़ी नाकामी है। यही कारण है कि ऐसे सभी प्रकार पर भी सरकारी नियंत्रण की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही है।
तकनीक के माध्यम से भारतीय युवा एवं किशोर पीढ़ी को अपने जीवन के प्रारंभ के समय से ही वासना के जाल में फंसाकर जीवन को धुंधलाने के प्रयास किए जा रहे हैं। यही कारण है कि हमारी युवा पीढ़ी बड़ी दुविधा में है;उन्हें भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उन्हें दिग्भ्रमित किया जाता है। ऐसी अनेक प्रकार की अश्लील सामग्री है, जिसकी चर्चा समाज के भीतर प्रबुद्ध लोगों को करने की आवश्यकता है, ताकि समय पर जागरूकता के साथ समाज और परिवार को गर्त में जाने से रोका जा सकता है।
दरअसल, शर्म जब बिकाऊ हो जाती है, तब शर्म नहीं;व्यापार हो जाती है। अभी तराजू के एक पलडे़ में ₹ है और दूसरे में नैतिकता, लज्जा, शालीनता, मूल्य और संस्कृति है। देह से जो पवित्र अभिव्यक्ति होती है, वह गायब है। देह को केवल चर्म मान लिया जाता है और चर्म का प्रदर्शन चरम तक पहुंच गया है। बड़ी-बडी़ कम्पनी इन प्लेटफार्म के सहारे अपना अश्लील उत्पाद बेच रही हैं और कार्यक्रमों को प्रायोजित कर रही हैं। उनके लिए सब कुछ रुपया है, जीवन मूल्यों से कोई लेना-देना नहीं है। बहुत विस्फोटक स्थिति हो गई है। अगर ऐसे लोगों की विकृति प्रसार की घटनाओं को नजरअंदाज किया गया तो अगली पीढ़ी का भविष्य खतरे में पड़ सकता है। भारतीय संस्कृति को बचाने और अच्छी चीजों के लिए प्रेरित करने हेतु सोशल मीडिया सशक्त माध्यम बन सकता है, पर ऐसे रणवीर से सोशल मीडिया को मुक्त करके ही यह संभव है।
आज सोशल मीडिया को नैतिक, मर्यादित एवं शालीन बनाने की जरूरत है। नैतिक मूल्यों का हृास होना नये भारत, सशक्त भारत एवं विकसित भारत की एक बड़ी बाधा है। क्या ये हास्य है ? ये बिल्कुल भी हास्य नहीं है। लोगों को गाली देना सिखाना, अश्लीलता परोसना, नारी अस्मिता को कुचलना एवं माता-पिता की छवि को धुंधलाना ऐसी विकृतियाँ हैं, जो देश को संस्कृति-विहीन बनाती है, कमजोर करती है।