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सावन सरस सुजान

बाबूलाल शर्मा
सिकंदरा(राजस्थान)
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सावन श्रंगारित करे,वसुधा,नारि,पहाड़।
सागर सरिता सत्यशिव,नाग विल्व वन ताड़ll

दादुर पपिहा मोर पिक,नारी धरा किसान।
सबकी चाहत नेह जल,सावन सरस सुजानll

नारि केश पिव घन घटा,देख नचे मन,मोर।
निशदिन सपन सुहावने,पिवमय चाहत भोरll

लता लिपटती पेड़ से,धरा चाहती मेह।
जीव जन्तु सब रत रति,विरहा चाहत नेहll

कंचन काया कामिनी,प्राकृत मय ईमान।
पेड़ लगा जल संचयन,सावन काज महानll

हरित तीज त्यौहार है,पूज पंचमी नाग।
रक्षा बंधन नेह मय,रीत प्रीत मन रागll

मन मंदिर झूले पड़े,पुरवा मंद समीर।
सावन मनभावन चहे,मादक हुआ शरीरll

रीत प्रीत पालो सखे,पावन सावन माह।
प्रेमभक्तिमय जगत हो,साजन साहिब चाहll

भक्ति प्रीत संयोग का,मधुरस सावन मास।
जैसी जिसकी भावना,वैसी कर मन आसll

शिवे शक्ति आराधना,कान्हा राधा नेह।
कृषक धरा की प्रीत से,सावन बरसे मेहll

सावन का संदेश है,करो मीत उपकार।
शर्मा बाबू लाल का,नमन करो स्वीकारll

परिचय : बाबूलाल शर्मा का साहित्यिक उपनाम-बौहरा हैl आपकी जन्मतिथि-१ मई १९६९ तथा जन्म स्थान-सिकन्दरा (दौसा) हैl वर्तमान में सिकन्दरा में ही आपका आशियाना हैl राजस्थान राज्य के सिकन्दरा शहर से रिश्ता रखने वाले श्री शर्मा की शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. हैl आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन(राजकीय सेवा) का हैl सामाजिक क्षेत्र में आप `बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ` अभियान एवं सामाजिक सुधार के लिए सक्रिय रहते हैंl लेखन विधा में कविता,कहानी तथा उपन्यास लिखते हैंl शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र में आपको पुरस्कृत किया गया हैl आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः हैl

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