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वक्त का चमत्कार

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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वायु की तरह ही वक्त के भी कोई सिरे-किनारे या छोर नहीं होते। युगों-युगों से अब तक इस पल तक वक्त की गति पर कोई परिवर्तन नहीं हुआ। वक्त न तो कभी थमा,न ही इसकी गति बढ़ी। हाँ,इतना जरूर होता है कि वक्त स्वयं को बदलकर अपने दायरे के हालात अवश्य बदल देता है। सतयुग, त्रेतायुग,द्वापरयुग से वर्तमान के कलयुग तक में भी वक्त के हिसाब से कितने बदलाव हुए हैं।
यहाँ यदि हम भारतीय पुराणों के अनुसार किवदंतियों को मानें तो पुरातन युग में भारतवर्ष की आध्यात्मिक शक्ति को देखते हुए कितने अविश्वसनीय चमत्कार हुए हैं। इन चमत्कारों को जानकर इतिहासकारों की सत्यता पर जहाँ संदेह की लकीरें खिंचने लगती हैं,वहीं मान लेने पर भारतवासी होने का गर्व भी होता है।
इसी चमत्कारिक कड़ी की श्रृंखला में अभी कुछ दिन पूर्व (दिसम्बर २०१९)ही एक बड़ा चमत्कार हुआ। यदि इसे माना जाए तो ये अभूतपूर्व है,वरना तो कहने वाले ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ जैसे महान ग्रन्थों को भी गलत ठहरा देते हैं।
चमत्कार देखिए कि लम्बे अन्तराल से इस बात का अहसास किया जा रहा था कि भारतीय जन समुदाय अपनी परम्परागत आध्यात्मिक शक्तियों, संस्कृतियों,हिन्दी भाषा,भारतीयता,प्रकृति रक्षण इत्यादि दुर्लभ संस्कारों को अनदेखा कर पाश्चात्य सभ्यता की ओर आकर्षण प्रबल हो रहा है। इस बात को भारतवर्ष की अनेकों संस्थाओं,समुदायों, व्यक्तियों ने उजागर किया। तदानुसार,इस पाश्चात्य आकर्षण को रोकने के अनन्य प्रयास किए गए, परन्तु किसी प्रकार की कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया अवलोकित नहीं हुई।
इस बीच करीब कुछ माह पूर्व (दिसम्बर २०१९) चीन के हुवान शहर से चलकर समूचे विश्व में एक महामारी का रूप धारण करने वाले ‘कोरोना’ विषाणु (कोविद-१९) नामक एक संक्रमण ने कोहराम मचा दिया। भारत में भी इसका असर हुआ ,पर विश्व के दूसरे शक्तिशाली देशों इटली,रूस, अमेरिका,फ्रांस की तुलना में अभी तक इसका इतना व्यापक-वीभत्स रूप देखने को नहीं मिला,जबकि जनसंख्या के अनुसार यह महामारी भारतवर्ष में अब तक की सबसे बड़ी दुखदायी आफत बन सकती थी।
यहाँ इस बात को कहना आवश्यक जान पड़ता है कि ऐसा ‘वक्त का चमत्कार’ शायद भारतवर्ष की पुरातन आध्यात्मिक शक्तियों की देन है,क्योंकि आज भारतवर्ष के घर-घर में रामायण, महाभारत,श्रीकृष्ण,विष्णु पुराण इत्यादि का अवलोकन हो रहा है। घर- परिवार के बुजुर्ग अपने वंशजों को विदेशों से वापस बुला रहे हैं। ये भी कहा जा सकता है कि भारतवर्ष की दैवीय शक्तियों के आवाहन से ‘वक्त का चमत्कार’ फलीभूत हो रहा है। ईश्वर से करबद्ध प्रार्थना है कि ऐसा ही कुछ होता रहे।

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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