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१ गोली ‘पेरासिटामोल’ की!

डोली शाह
हैलाकंदी (असम)
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सूरज की लालिमा के साथ आँख खुलते ही बेटी सोनी का ताप देख रीमा सोच में पड़ गई। वक्त के साथ बिगड़ती तबियत देख वह फौरन चौराहे के दवाखाना पहुंची।
“भैया, पेरासिटामोल की २ गोली दे दीजिए और कुछ एंटीबायोटिक भी।”
“मैडम पहले प्रिसक्रिप्शन दिखाइए।” दुकानदार ने कहा।
“भैया ऐसे ही दे दीजिए, डॉक्टर के पास नहीं गए हैं। अचानक सुबह उठकर देखा तो बच्ची बिल्कुल बुखार से तप रही थी।”
“मैडम, लेकिन बिना प्रिस्क्रिप्शन के हम दवा नहीं देते।”
“प्लीज भैया, अभी मात्र ७ बज रहे हैं, डॉक्टर १० से पहले नहीं आएंगे।”
इतने में रीमा के हालात देख उन्होंने दवा निकाल कर दे दी। रीमा फौरन ‌घर भागी और सोनी को दवा दी।
करीब २ घंटे बीत गए, लेकिन बुखार पर कोई असर न देखकर उसने पिता को सारी सूचना दी, जो ४५ दिनों से ट्रेनिंग में नेपाल बॉर्डर पर तैनात थे। यह सुनते ही उन्होंने फौरन डॉक्टर को दिखाने की सलाह दी।
१० बजने ही वाले थे कि, रीमा बेटी को लेकर नर्सिंग होम पहुंची। डॉक्टर साहब उसे जांच कर प्रिस्क्रिप्शन बताते हुए, -“यदि कल तक बुखार कम नहीं हुआ तो ब्लड टेस्ट करवाना होगा।” इतने में रीमा ने सोनी को पहले खिलाई दवाई के पत्ते को डॉक्टर साहब को दिखाया,- “सर, यह दवा मैंने आज सुबह दी थी, लेकिन इससे उसकी तबियत में कोई सुधार नहीं हुआ।”
डॉक्टर साहब बड़े गौर से देखते रहे,- “कहाँ से ली आपने यह दवाई ?”
“बेटी की बिगड़ी तबियत देख सामने के चौराहे की अमृत भैया की दुकान से…।”
डॉक्टर साहब मौन रहे, फिर बोले,-“यह मत खिलाइएगा, इसकी डेट एक्सपायर हो चुकी है।”
“क्या!!”
“हाँ, आपने खरीदी तो देखी नहीं!”
“नहीं सर, मैंने कुछ ध्यान नहीं दिया। वो बार-बार मुझसे प्रिस्क्रिप्शन मांग रहे थे, मगर मैंने उन्हें ऐसे ही देने को कहा…।”
“आप लोग ना इसलिए तो…, अरे पैसे दे रहे हैं तो थोड़ा जांच करके तो सामान लिया कीजिए…!”
वह मन ही मन सोचते रहे, इतनी सुविधा के बावजूद भी लोगों के ये हालात…. “यह यहीं छोड़ दीजिए।”
सिर झुकाए रीमा वहाँ से चली आई।
“प्रिस्क्रिप्शन दिखाकर फिर से आप नई दवाइयाँ ले लीजिए।”
“जी जरूर सर।”
रीमा ने अन्य मेडिकल स्टोर से दवा ली, तो यह दवाई फौरन अपना रंग दिखाने लगी। वहीं, डॉक्टर साहब से एक्सपायरी डेट वाली दवा की बात गले नहीं उतर रही थी। वह घर लौटते हुए अमृत भाई की दुकान पर पहुंचे।
“अरे डॉक्टर साहब आप!” अमृत भाई ने कहा।
“हाँ, जरा तबियत कुछ सही नहीं लग रही है, मुझे पेरासिटामोल की २ गोली दे देना।”
“अरे बैठिए, अभी देता हूँ…।”
आगे करते हुए -“लीजिए।”
डॉक्टर साहब वहीं खड़े हुए दवाइयों को गौर से देखते रहे, लेकिन खुद को रोक न सके और बोले- “क्या आप लोग बिना प्रिस्क्रिप्शन के दवाइयाँ देते हैं ?”
“सर, वैसे तो नहीं देते, मगर अब आपसे…!’
“अच्छा चलिए, कोई बात नहीं। क्या आपने यह दवाई आज सुबह किसी को दी थी ?”
“ऐसा तो मुझे कुछ याद नहीं…”, लेकिन वह मन ही मन सोचने लगे।
“ख्याल कीजिए, शायद कुछ याद आ जाए।”
“अरे सर, सारा दिन हजारों लोग दवाइयाँ ले जाते हैं, कहाँ इतना ख्याल रहता है।”
“आपकी बात तो सही है।” इतने में अमृत भाई ने कहा-“ये दवाई शायद आज राम-राम की बेला में एक महिला ले गई थी, उसकी बच्ची को अचानक बहुत ताप आ गया था, और मेरे पास नया स्टॉक नहीं था तो यही दे दिया।”
“लेकिन अमृत भाई, यह तो २ महीने पहले ही एक्सपायर हो चुका है।”
“हाँ साहब, जल्दी-जल्दी में कुछ ख्याल नहीं किया।”
“अमृत भाई, आप समझ नहीं सकते हैं कि, आपकी एक छोटी-सी गलती किसी की जान भी ले सकती थी। जानते हैं, एक मरीज जब दवा लेने दवाखाना आता है तो डॉक्टर के बाद उसे ही फरिश्ता मान लेता है। वह कागज पर स्याही तो जरूर देखता है, लेकिन अनजाना सा!”
“हाँ, आपकी बात तो सही है।”
“अमृत भाई, ऐसी चीज आप लोग रखते ही क्यों हैं ? मेरी बात मानिए, जितनी दवाइयाँ एक्सपायर हो चुकी हैं, उन्हें कंपनी को रिटर्न क्यों नहीं करते! आज तो सोशल मीडिया का जमाना है, एक रिटर्न मैसेज कीजिए उनकी कंपनी के सदस्य यहाँ आकर स्वयं ही ले जाएंगे। केवल कुछ प्रतिशत की ही तो आपकी हानि होगी।”
डॉक्टर साहब की बात सुन अमृत भाई ने फौरन कंपनी को मैसेज किया और सारी एक्सपायर दवाइयां पैक करवा दीं। यह करके अमृत भाई के चेहरे पर शर्मिंदगी की हँसी आई तो डॉक्टर साहब को कुछ अच्छा करने की तसल्ली हुई।