अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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बहन बेटी
इनको ही सम्भालें
अद्भुत रत्न।
है ये आलोक
करती फ़िक्र सदा
सम्भाले लोक।
है अरूणिमा
हर रूप में सेवा
बेटी, कभी माँ।
बेटी महान
पाती जब शिखर
बढ़ता मान।
निभाती रीति
जोड़ती हर कड़ी
बढ़ाती प्रीति।
वीरांगना है
जब आती विपदा
होती गम्भीर।
मूर्ति ममता
हर गम सहती
रखे समता।
देखती ख़्वाब
फैलाए स्वयं पंख
उड़े नभ में।
देनी है शिक्षा
बढ़ाए कुल मान
यही हो रक्षा।
समझो जरा
बेटी से है दुनिया
बेटी ही धरा।
बालिका बचे
संवारो यूँ भविष्य
दुनिया रचे॥