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अनंत की यात्रा

कवि योगेन्द्र पांडेय
देवरिया (उत्तरप्रदेश)
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सूर्य के चारों तरफ,
परिक्रमा कर रहे हैं
सभी नव ग्रह
सूरज भी घूम रहा है,
अपनी आकाशगंगा के चारों तरफ।

ग्रहों और सितारों की ये यात्रा,
अनंत काल से चली आ रही है
सृष्टि के आदि और अंत तक,
चलती रहेगी ये अविराम यात्रा।

ग्रहों की ये दौड़-भाग,
आखिर किस लिए है ?
क्यों सभी ग्रह, तारे और नक्षत्र,
घूमते रहते हैं सूर्य के और
अपनी आकाशगंगा के चारों ओर ?

विज्ञान चाहे कुछ भी तर्क दे,
मगर
मेरा कवि हृदय कहता है कि,
जैसे भँवरा चक्कर लगाता है फूलों का
और फूलों के आगोश में होने का स्वप्न देखता है,
ठीक वैसे ही सभी ग्रह, नक्षत्र, तारे
प्यासे हैं अमृत रस के लिए,
और उसे पाने के लिए
चक्कर लगाते हैं,
अपने-अपने तारे और आकाशगंगा का।

यही सोचता हूँ मैं,
आकाश को निहारते हुए
और तभी नींद आती है।
मुझे लेकर चली जाती है,
सपनों की सुनहरी दुनिया में॥

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